EK KHABAE KHABRCHIO KI PART -2
PART -2
अब आते हैं सीनियर पत्रकारों के बारे में बोलना उसमें
अब बात हम "रविश कुमार" की करते हैं एक बेहतरीन गजब भाषा पर सटीक कमांड के साथ मौजूदा हालत की बिलकुल सही जान कारी लोगो तक पहुँचाना यही जर्नलिज्म हैं। वैसे और चेनलो में ये जनरलनिजम कही दिखाई नहीं पड़ता ओह गलत कहा सुनाई भी नहीं पड़ती। रविश की बात उपर दिए सभी से अलग हैं या यू कहे के वो इन सब के जनक के रूप में भी देखना चाहिए सरकार से सवाल करना जनरलिजम का पहला धर्म हैं वो भी......! हिंदी में न्यूज़ पड़ने वाले सुनने वालो को सही जान कारी देना यही सही जर्नलिज्म हैं हिंदी में कहें तो पत्रकारिकता। रविश को आप सभी भली भाती जानते हैं इनके साथ घटित घटनाये गाली गलोचो से आप सभी वाकिफ हैं मेरे बताने को ऐसा कुछ नहीं बस में रविश जी के बारे में कुछ कहना चाहता हूँ तो यही माध्यम सही लगा के हिंदी के पत्रकार की हिंदी में की गई तारीफ किसको पसंद नहीं लेकिन "रविश कुमार" जी की तारीफ सभी वो लोग करते हैं जो उनको दिल से पसंद करते ही हैं साथ में उनके शो को रात 9 बजे के प्राइम टाइम में सुनना पसंद करते हैं में उनके लिए ये लिख कर लोगो तक उनकी न्यूज़ देने की कला उनका अंदाज़ ए बयां। लोगो को कम शब्दों में बताना चाहता था। सायद में उन शब्दों का सही चयन कर पाऊं। में उम्मीद करता हूँ आप लोग मेरी भावनाओँ को समज लेंगे। रविश कुमार जी मेरे और मेरे जैसो के लिए बड़े ही आदरणी पत्रकारो में से हैं जैसे "विनोद दुआ" जी मेरे लिए आदरनिये हैं रविश जी का भी मेरे नज़दीक वही मुकाम हैं। रविश जी का बोलने का अंदाज हो या किसी से सवाल करते हुए उची आवाज न करना हो चाहे प्रवक्ता उची आवाज़ में बात कर रहा हो। नाराज़गी भोई जब रविश जी प्रकट करते हैं तो मनो वो आप से विनर्म आवेदन कर रहे हो उनका कर सवाल मौजूदा सरकार के मंत्रीओ से होता हैं जिसकी जवाब देहि बनती हो। मगर लगता हैं मुजूदा सरकार रविश कुमार से दर गई हैं उनके शो में भेजता हैं चाहे सरकार का हो या पार्टी का उसमें रविश के प्राइम शो में किसी को नहीं भेजा जाता। ऐसा किउ किउ की सवाल करने वाला सार के खिलाफ यानी देश का गद्दार साबित कर देते हैं अंधभगत। वैसे अंधभगतो से रविश कुमार को गालिओ के अलावा और कोई मिठाई नहीं मिलती। उनका एक एक शब्द घेवर के मीठे टुकड़े की तरह होता हैं जिसको खा कर मधुमेह न भी हो तो भी हो जाये। मधुमेह सेहत के लिए नुक्सान दायक होती हैं पर खेर कुछ तो मीठा मिलना कोई नै बात नहीं जब से 6 साल से ये सरकार आई हैं रविश कुमार को पता नहीं रोज़ ही सायद ऐसी मिठाई जिसमें रास की जगह गालिओ का रस भरा होता हैं मिलती रहती हैं वैसे इससे मदुमेह वाले को कोई नुक्सान नहीं होगा क्युकी मीठा रस नहीं हैं ना।
अब बात हम "रविश कुमार" की करते हैं एक बेहतरीन गजब भाषा पर सटीक कमांड के साथ मौजूदा हालत की बिलकुल सही जान कारी लोगो तक पहुँचाना यही जर्नलिज्म हैं। वैसे और चेनलो में ये जनरलनिजम कही दिखाई नहीं पड़ता ओह गलत कहा सुनाई भी नहीं पड़ती। रविश की बात उपर दिए सभी से अलग हैं या यू कहे के वो इन सब के जनक के रूप में भी देखना चाहिए सरकार से सवाल करना जनरलिजम का पहला धर्म हैं वो भी......! हिंदी में न्यूज़ पड़ने वाले सुनने वालो को सही जान कारी देना यही सही जर्नलिज्म हैं हिंदी में कहें तो पत्रकारिकता। रविश को आप सभी भली भाती जानते हैं इनके साथ घटित घटनाये गाली गलोचो से आप सभी वाकिफ हैं मेरे बताने को ऐसा कुछ नहीं बस में रविश जी के बारे में कुछ कहना चाहता हूँ तो यही माध्यम सही लगा के हिंदी के पत्रकार की हिंदी में की गई तारीफ किसको पसंद नहीं लेकिन "रविश कुमार" जी की तारीफ सभी वो लोग करते हैं जो उनको दिल से पसंद करते ही हैं साथ में उनके शो को रात 9 बजे के प्राइम टाइम में सुनना पसंद करते हैं में उनके लिए ये लिख कर लोगो तक उनकी न्यूज़ देने की कला उनका अंदाज़ ए बयां। लोगो को कम शब्दों में बताना चाहता था। सायद में उन शब्दों का सही चयन कर पाऊं। में उम्मीद करता हूँ आप लोग मेरी भावनाओँ को समज लेंगे। रविश कुमार जी मेरे और मेरे जैसो के लिए बड़े ही आदरणी पत्रकारो में से हैं जैसे "विनोद दुआ" जी मेरे लिए आदरनिये हैं रविश जी का भी मेरे नज़दीक वही मुकाम हैं। रविश जी का बोलने का अंदाज हो या किसी से सवाल करते हुए उची आवाज न करना हो चाहे प्रवक्ता उची आवाज़ में बात कर रहा हो। नाराज़गी भोई जब रविश जी प्रकट करते हैं तो मनो वो आप से विनर्म आवेदन कर रहे हो उनका कर सवाल मौजूदा सरकार के मंत्रीओ से होता हैं जिसकी जवाब देहि बनती हो। मगर लगता हैं मुजूदा सरकार रविश कुमार से दर गई हैं उनके शो में भेजता हैं चाहे सरकार का हो या पार्टी का उसमें रविश के प्राइम शो में किसी को नहीं भेजा जाता। ऐसा किउ किउ की सवाल करने वाला सार के खिलाफ यानी देश का गद्दार साबित कर देते हैं अंधभगत। वैसे अंधभगतो से रविश कुमार को गालिओ के अलावा और कोई मिठाई नहीं मिलती। उनका एक एक शब्द घेवर के मीठे टुकड़े की तरह होता हैं जिसको खा कर मधुमेह न भी हो तो भी हो जाये। मधुमेह सेहत के लिए नुक्सान दायक होती हैं पर खेर कुछ तो मीठा मिलना कोई नै बात नहीं जब से 6 साल से ये सरकार आई हैं रविश कुमार को पता नहीं रोज़ ही सायद ऐसी मिठाई जिसमें रास की जगह गालिओ का रस भरा होता हैं मिलती रहती हैं वैसे इससे मदुमेह वाले को कोई नुक्सान नहीं होगा क्युकी मीठा रस नहीं हैं ना।
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