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गिद्धों का आतंक- गिद्ध क्या कर रिया हैं?

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गिद्ध क्या कर रिया हैं? " एक कबूतर ने पतंग के धागे में लिपट कर अपने घोसले में आत्महत्या कर ली, वो कबूतर अपनी सोसाइटी में एक जाना पहचाना नाम हो चूका था। खूबसूरत तो था ही अपनी नसल का बेहतरीन कबूतर था. अदाकार था। मगर वो अंदर ही अंदर घुलता जा रहा था कोई परेशानी उसको खाई जा रही थी। मगर वो उन परेशानिओ के सामने डट कर ज्यादा देर खड़ा न पाया ओर हार गया।और वो इस संसार को अलविदा कह गया। "    "Every tree says something, I have started writing on this subject. Some things happen on the tree. On which there is a story between the leaves and the living birds who tell each other the day-to-day story. They are written in Hindi but will translate it into English, and Urdu too. गिद्ध क्या कर रिया हैं गिद्धों का आतंक                  आ ज चील भिन भिना रही थी। अभी इस डाल कही पर तो कभी उस डाल। बेचैनी बढ़ती जा रही थी। कभी इधर देखती कभी उधर देखती, जब रहा नहीं गया तो दोमुखी ने चील से पूछ ही लिया।  "आंटी क्या बात हैं आप तो कभी इधर कभी उधर, कभी इस डाल कभी उस डाल पर उछल-कूद मचा रही हो. पागलो की त

आज फिर से ख़ामोशी हैं,

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आज फिर से ख़ामोशी हैं आ ज फिर से ख़ामोशी हैं, आज फिर से कोई रोया हैं।  देखो तो सही कही कोई इंसा भूखा सोया हैं।  तुम भी जाओ, वो भी जाएँ, देखो कोई रह न जाये, सब जाएँ।  देखना हैं मुझको, इस खामोशी में कोई दफन तो नहीं।    वास्ता पूछते हो मेरा उससे, देखो तो सही खुद अपना भी पता मालूम नहीं।  खुद चले हो दीवाना होने के लिए, और कहते हो तुम दीवाने हो।  ज़रा संभलना, कही उस घर की मिटटी में कुछ अपनी सी खुशबू तो नहीं।   न जाने बदलो में कोन सी गुफ़्तगू हुई, बारिश के बीच भी एक होड़ सी हुई। में रोकता रह गया, मेरा ही घर सेहर में था, वही बारिश हुई।  अब टूटे घर में पानी, पानी हैं. जब उसने पूछा, कोई यहाँ दफ़न तो नहीं।  ख़ामोश रहता तो सायद आज में भी खुशगवार होता।  किसी ने मुझे चढ़ा कर अपना मुफीद सीधा कर लिया। .  इस ख़ामोशी का अंदाजा कही यूं ही तो नहीं।   कही मैं,मैं न रहूं, कही तुम तू न रहों ।  लेखक  इज़हार आलम देहलवी  writerdelhiwala.com  हम गरीब तो न थे पर गरीब से कुछ कम न थे , जब पूछा, कैसे।  तो मुस्कुरा दिए, न कुछ बोले न कुछ कहा, बस लिए झोला उठाए और चल दिए।