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सिस्टम नाकाम हो गया

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पैंटीग  इज़हार (सिस्टम)  सिस्टम सिस्टम नाकाम हो गया सिस्टम नाकाम हो गया,  कमी सिस्टम की थी! कमी सिस्टम की थी।   सिस्टम अपना काम नहीं करता, सिस्टम कभी भी धोखा दे सकता हैं, सिस्टम खुद खड़ा नहीं हो सकता, सिस्टम, सिस्टम का हिस्सा बनता जा रहा हैं, सिस्टम , सिस्टम और सिस्टम।  जब सुना तो यकीन न कर पाया, के सात साल का सिस्टम कैसे नाकाम हो गया, लम्बे लम्बे तारो का बढ़ाना तो अभी शुरू ही किया था, रविंदर नाथ टैगोर दिखना/बनना तो अभी बाकी था, इलेक्शन का भी तो बोझ हैं सिस्टम पर, अभी तो बंगाल के लिए सिस्टम बाकी हैं. अभी तो सिस्टम ठीक करना सिस्टम का बाकी हैं, अभी तो बाक़ी है सिस्टम को चमकना।  सिस्टम-सिस्टम पर तुम ब्लेम करते रहो,  बस! क्युकी! तुम नक्सलवादी  हो! तुम आतंकवादी हो, तुम विद्रोही हो,  तुम टुकड़े टुकड़े गैंग हो, तुम सवाल बोहोत करते हो तुम भी तो सिस्टम हो।  पिछले कोरोना के काम से थक गया था, थोड़ा आराम तो कर लेने देते, पिछले एक साल से तो सिस्टम सोया था,  हज़ारो लाशो का शोर भी सायद जल्द न उठा पाए, क्युकी कुम्भकर्ण को जगाना आसान था,  सिस्टम को जागाना अभी बाक़ी हैं. क्यों जगा रहे हो,अभी सहर कहा हुई हैं, अभी

earth day / oxygen

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Every tree says something    Earth day/ Oxygen  आज अर्थ-डे हैं यानी धरती का दिन। जो 22 अप्रैल 1970 को मनाया जाता हैं।  मैं सुबह से ही न्यूज़ देख रहा था जबकि मैं आज कल के हालत में न्यूज़ कम ही देखता हूँ पर दो तीन से ऑक्सीजन की कमी के बारे में बताया जा रहा हैं मैं ख़बरे देख कर बड़ा विचलित सा हो गया इस लिए नहीं के कोरोना हैं इस लिए जो लोग कोरोना से पीड़ित हैं और ऑक्सीजन की वजह से ज़िंदा हैं या ज़िंदा रखने की कोशिश की जा रही हैं हॉस्पिटल को ऑक्सीजन मिलने में कठिनाई हो रही हैं। नहीं बाबा, मरीज़ को बाद में ऑक्सीजन पहले हॉस्पिटल को भी ऑक्सीजन चाहिए। जब हॉस्पिटल में होगी तो ही मरीज़ को मिलेगी।   एर्थ डे पर में ये क्या बाते कर रहा हूँ।  ठीक।  पहले मैं  भी लिखने से पहले सोच रहा था।  पर दोनों का कही न कही कोई सम्बन्ध हैं।  दुनिआ की  काम होती ऑक्सीजन और हॉस्पिटल को मिलने वाली ऑक्सीजन का आपस में गहरा संबंध हैं। दोनों तरफ ऑक्सीजन इंसानो के जीने का साधन हैं जो ज़िंदा रखने के लिए एक एहम और जीवनयापी  औजार के रूप में हैं।   मैं इसी विषय पर एक शार्ट मूवी देख रहा था यूट्यूब पर हैं लिंक में डाल दूंगा देख लेना। उस व

अब्बू की महक

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अब्बू की महक                                     paintings  @izhar alam                      “या अल्लाह आज क्या होगा” “पिछले साल जैसा न हो, अल्लाह ऐसा मत करना, आज बोहोत बड़ा दिन हैं आई.ए.एस. का फाइनल रिजेल्टआने वाला है” I इस दिन के लिए लिए “ मेहक मेहँदी” ने बड़ी मेहनत की थी।   घर बोहोत कर्ज़दार हो गया था मेहक की कोचिंग करने में। अब्बू एक छोटी सी परचून की दुकान पर मुन्सी का काम करते थे। वहा से उनको 5500/- रुपए महीना तन्खुआ मिलती थी। ड्यूटी भी 18 घंटे थी ।  घर वालो को टाइम ही कहा दे पते थे। सुबह बच्चों को सोते हुए छोड़ जाते,और देर रात को लौटते थे। मेहक पड़ती हुई छोटे से मकान का दरवाज़ा खोलती थी। बस यही मुलाकात होती हैं अब्बू से। अब्बू को खाना बना कर देना रोज़मर्रा थी मेहक की। और फिर वही पढ़ाई करना। यही थी कड़ी मेहनत की मेहक की। इस दिन के लिए। “लो वेब साइट पर हल-चल बढ़ गई हैं खुल क्यूँ नहीं रही हैं ये वेब साइट”। “कम्बखत” “खुल जा न” , अल्लाह,अल्लाह  करती हुई मेहक में अपना रोल नम्बर वेब साइट में सर्च किया और आँखें बंद करके अल्लाह का नाम लेने लगी। मेहक मेहक ये क्या हुआ उसकी दोस्त बोली जो साथ