अब्बू की महक


अब्बू की महक

paintings  @izhar alam

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 “या अल्लाह आज क्या होगा” “पिछले साल जैसा न हो, अल्लाह ऐसा मत करना, आज बोहोत बड़ा दिन हैं आई.ए.एस. का फाइनल रिजेल्टआने वाला है” I इस दिन के लिए लिए “ मेहक मेहँदी” ने बड़ी मेहनत की थी। 

 घर बोहोत कर्ज़दार हो गया था मेहक की कोचिंग करने में। अब्बू एक छोटी सी परचून की दुकान पर मुन्सी का काम करते थे। वहा से उनको 5500/- रुपए महीना तन्खुआ मिलती थी। ड्यूटी भी 18 घंटे थी ।  घर वालो को टाइम ही कहा दे पते थे। सुबह बच्चों को सोते हुए छोड़ जाते,और देर रात को लौटते थे। मेहक पड़ती हुई छोटे से मकान का दरवाज़ा खोलती थी। बस यही मुलाकात होती हैं अब्बू से। अब्बू को खाना बना कर देना रोज़मर्रा थी मेहक की। और फिर वही पढ़ाई करना। यही थी कड़ी मेहनत की मेहक की। इस दिन के लिए। “लो वेब साइट पर हल-चल बढ़ गई हैं खुल क्यूँ नहीं रही हैं ये वेब साइट”। “कम्बखत” “खुल जा न” , अल्लाह,अल्लाह  करती हुई मेहक में अपना रोल नम्बर वेब साइट में सर्च किया और आँखें बंद करके अल्लाह का नाम लेने लगी। मेहक मेहक ये क्या हुआ उसकी दोस्त बोली जो साथ ही खड़ी थी उसके। मेहक आंखे बंद करके। ” क्या है” बोहोत डरी हुई थी मेहक। आंखे खोलो मेहक आंखे खो-लो। “नहीं नहीं पहले रिजल्ट में क्या आया हैं जल्दी बताए” .तभी मेहक पर ठंडा पानी गिरता हैं । “ तुम अभी भी उस सदमे में हो अरे बेटा  वो 2 साल पहले की कहानी हैं अभी तो तुम को तैयार हो कर ऑफ़िस जाना हैं आज इस ऑफ़िस में पहला दिन हैं बेटा। जल्दी तैयार हो जाओ मेरी प्यारी आई.ए.एस. मिस मेहक मेहँदी।”अब्बू बैठे थे सामने।  चादर से मोह पोछती हुई । मेहक डरी डरी सी बैठी थी, के सामने अब्बू को देख उनसे लिपट गई और अब्बू के  कहने पर जल्द तैयार होने चली गई। मेहक के अब्बू उन दिनों को याद करते हैं, किस कदर रोइ थी, जब वो पहली बार फेल हुई  थी, आई.ए.एस. के एक्जाम में सारे सपने टूट गए थे। मेहक ने उसके बाद एक फ़ैक्टरी में मुंशी का काम करने लग गई थी। अपने अब्बू का हाथ बटाना चाहती थी ताकि अब्बू का कर्ज का बोझ कम कर सके और अपने छोटे भाई बहनों को भी पालने में मदद कर सके। अब्बू कर्ज़दार जो हो गए थे  मेहक की कोचिंग कराने में। 

 अब्बू के समझाने के बाद वो रात में  पड़ती सुबह से 1 बजे तक कोचिंग, फिर फ़ैक्टरी में पार्ट टाइम जवाब करती, कड़ी मेहनत की मेहक ने।  अपने इस ख़्वाब को पाने के लिए,इसकी मेहनत  इस मुकाम पर ले आई हैं हार को जीत में बदलना ये मेहक से सीखा हैं। मेने 

 आज उसी छोटे से घर के बहार सेकड़ो लोग हाथों में फूल लिए मौजूद थे,जो लड़की को न पढ़ाने की सलाह देते थे। आज महक वही की जिला मजिस्ट्रेट हैं जहा कभी उसका बचपन बिता था और लोगो की गाली भी खाई थी।  अब सब महक जैसी लड़की चाहते हैं। ये हैं अब्बू की महक 

लेखक 

इज़हार आलम देहलवी 

writerdelhiwala.com  

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