इन्दु त्रिपाठी आर्टिस्ट

इन्दु त्रिपाठी आर्टिस्ट 


आर्टिस्ट की अपनी मनोकामना होती है जो पूरी ज़िंदगी पूरी करने की कल्पना करता रहता है।मनोकामना की कामना उसकी एक सोच होती है।कलाकार अपनी सोच को ही लोगो को बाँटता रहता है ! कभी रंगो के माध्यम से तो कभी मूर्तिकला,कभी इंटोलेशन,या किसी ओर माध्यम से जिसे उसको सुकून मिले। आर्टिस्ट (कलाकार) उसका अपना किरदार होता है। अपना अस्तित्व होता है जिसे पाने के लिए वो जद्दोजहद(struggle) करता है।वो एक स्त्री! जिसको अपना मुक़ाम पाने में ज़्यदा जद्दोजहद करनी पड़ती है वर मुझे बताने की ज़रूरत नहीं क्यों?
इन्दु त्रिपाठी नाम ही काफ़ी हैं एक औरत कहलाने के लिए , वैसे वो एक स्त्री है, औरत है, नारी है, लड़की है, लेडीज है, माँ है, बीवी है, बहन है, सास है, बेटी है, और ना जाने कितने पात्र होती है इन्दु त्रिपाठी भी इनमें से एक है।
इन्दु को मैं कई बरसों से जानता हूँ उनके साथ स्टूडियो शेयर भी करता हूँ।(गढ़ी स्टूडियो ललित कला अकादमी दिल्ली ) उनकी पेंटिंग्स से मैं काफ़ी मुतासीर हुआ हूँ, और काफ़ी पसंद भी करता हूँ उनकी पेंटिंग्स। जहां तक मेरी बात है मेरी समझ से उन्होंने अपने जीवन के उतार चढ़ाओ को ही अपनी पेंटिंगंस में जगह दी।मैं उनकी एक पेंटिंग्स को काफ़ी गौर से देख रहा था बार बार देखे जा रहा था तो इन्दु ने मुझे टोका क्या देख रहा है इज़हार! मैं सोचने लगा क्या बताऊँ! तारीफ़ करूँ या कुछ नया बताऊँ खेर मैं बातों को टाल गया और उनसे उनकी पेंटिंग्स के बारे में पूछने लगा।पूछने पर - इन्दु की पेंटिंग्स में आपको बहुत से पंछी मिलेंगे वो भी चिड़ियाएँ यही ख़ासियत है आगे मेरे पूछने पर उन्होंने बताया के मैं अपने ही जीवन पर पेंटिंग्स बनती हूँ। मेरी ज़िंदगी मैं इस्त्री शब्द ने मुझे घेरा हुआ है। मैंने भी जब उनकी पेंटिंग्स को निहारा तब मुझे भी एहसास हुआ था जैसे “फ़्रीडा कार्लो”(frida kahlo))की जीवनी देख सकते हैं अपने अपर सब्जेक्ट पर ही सारी पेंटिंग्स बनाई, अपनी ज़िंदगी के अफ़साने ही रंगो में डुबो दिए। छोटी ज़िंदगी को लंबी ज़िंदगी मैं तब्दील कर गई, जब तक कला को चाहने वाले लोग रहेंगे तब तक वो दुनियाँ में ज़िंदा रहेंगी अपनी कला कृतियों के ज़रिये। ठीक इसी प्रकार इन्दु की पेंटिंग में मुझे चिड़ियाँ जो एक पात्र (करेक्टर) के चरो तरफ़ उड़ रही हैं उसकी गोद में बैठी हैं उसके बालो से खेल रही है उसके कपड़ों की शान बड़ा रही है वो ही है जो जीवन को दर्शा रही हैं। चिड़ियाएँ ज़िंदगी के काम काज को दर्शा रही हैं जहां वो एक इस्त्री है औरत है नारी है लड़की है लेडीज है माँ है बीवी है बहन है सास है बेटी है और ना जाने कितने पात्र है । 
इन्दु त्रिपाठी जी की पेंटिंग्स में ज़िंदगी की भागदौड़ है,ज़िंदगी ख़ुशियाँ है, ज़िंदगी के दर्द है, जो हर इस्त्री झेलती है। 
बात इन्दु की पेंटिंग्स की करे तो -  इन्दु की पेंटिंग्स को आप दूर से भी पहचान सकते हो उनकी पेंटिंग्स का अपना तोर तरीक़ा(स्टाइल ) है। रंगो का ताल मेल चमकीले (ब्राइट) रंगो का इस्तेमाल उनकी नई बनाई पेंटिंग्स की ख़ासियत हैं जो एक्रेलियक कलर के माध्यम से बनाई गई है। जिनको देख कर आप दूर से ही बाता सकते हैं के वो इन्दु की पेंटिंग है यही तो चाहिए होता ही आर्टिस्ट को के लोग दूर से ही पहचान ले किसी की पेंटिंग्स लगी है,पर पहले उन्होंने सिर्फ़ आयल रंगों का इस्तेमाल किया था। उनकी तकनीक रंग लगाने की कला उन्होंने जिस प्रकार से कैनवास पर लगाये हैं जो देखते ही बनते है और शायद आज के कलाकार इस तरह की तकनीक का इस्तेमाल कम ही करते हैं।
“इन्दु त्रिपाठी”की पेंटिंग्स मैं आयल पेंटिंग्स की बनावट रंगो का संयोजन ब्रश (तूलिका )लगाने की कला काफ़ी प्रभावित करने वाली हैं।आयल रंगो की सजावट रंगो की बुनावट (मिश्रण)( जिसप्रकार एक औरत  उन से सुवेटर बुनती हैं नया डिज़ाइन बनती है )जिस प्रकार से कैनवास पर कलाकृति को रंगो के सहारे सजाया गया था वो ग़ज़ब का था ।इन्दु ने धार्मिक सब्जेक्ट पर भी काफ़ी पेंटिंग्स बनाई हैं, जैसे शिव, राधा-कृष्ण आदि मगर उन्होंने औरत की जीवन पर ज़्यादा तादाद में बनाई है क्योंकि इन्दु को अपनी ज़िंदगी पर पेंटिंग्स बनानी पसंद है।
आप इन्दु के ज़रिये बनाई पेंटिंग्स की आकृति को कहानी कहते देख सकते हैं उनकी पेंटिंग्स की मुख्य पात्र हो या सहायक पात्र हो सभी अपने में ढेरों उपदेश लिए बैठे होते है जिनको आप निहारते निहारते उसकी घहराइयो में समा जाते है। हल्के रंगो की पर्त के ऊपर ढेरों जीवन के संदेश मिलेंगे जो गहरे रंगो के इस्तेमाल करते हुएँ लाइनो को एक नया आयाम देते नज़र आते है, जिसे आप पहली नज़र में कपड़े पर हुई नक़्क़ाशी की तरह लगेंगे जो की उस की अपनी एक कहानी बायाँ करती है। उस नक़्क़ाशी को देखते देखते आप इन्दु की ज़िंदगी का एक उपन्यास पड़ते नज़र आते है। उस उपन्यास की गहराइयों की भातीं उसकी भावनाएँ मन को छू जाती है
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