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हसरत थी हज़रत बनने की, बईमान कहते हैं लोग।

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हसरत थी हज़रत बनने की, बईमान कहते हैं लोग।  हसरत थी हज़रत बनने की, बईमान कहते हैं लोग।  मिजाज़ ही तो अपना सियासी था।  वो कहते हैं, मेरी खुआइश में कोई दम नहीं। ये आदम जात क्या जाने बाज़ुओ में अभी दम हैं बोहोत।  मिलना था सियासत में उनको।ये उनका गुनाह न था।  उनको कहा पता था, सियासत धोखा ही होता हैं।  वो कहते थे,तुम स्याह हो, हम कहते थे स्याह तो कानह भी था. मगर मोहब्बत का पुजारी था। वो न मानी, हम मुस्कुराये, उन्होंने नज़रो को चुरा लिया।  एसा क्या था, किया माफ़ और दिल निकल रख दिया।    हें अब उस चौराहें नाम इज़हार।   लेखक  इज़हार आलम  (writerdelhiwala)

श्रदांजलि. हम मर भी जाए तो कोई गम नही लेकिन मरते वक्त मिट्टी हिन्दुस्तान की हो

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श्रदांजलि  . गलवान के वीर सपूतो को  "जब आँख खुले तो धरती हिन्दुस्तान की हो  जब आँख बंद हो तो यादेँ हिन्दुस्तान की हो  हम मर भी जाए तो कोई गम नही लेकिन मरते वक्त मिट्टी हिन्दुस्तान की हो" Tribute to the martyrs of Galvan Valley                                  Galwaan india-chaina waar(laddakh,india)          ची ल आंटी बोहोत खुश थी सभी अपने अपने कामों में बिज़ी थे पर न जाने ये ख़ुशी कब तक सलामत रहती।  सभी एक दूसरे से बाते बतिया रहे थे  खुश थे। के तभी चील आंटी को कुछ दिखाई दिया कुछ अजीब अजीब आवाज़ सुनाई दे रही थी चील आंटी की मुस्करात हसीं धीरे धीरे गायब होती गई।  पास बैठी गुररया ने आंटी से पूछा " क्या हुआ आंटी आज तो मौसम भी खुशगवार हैं सूरज भी ज्यादा नहीं दमक रहा हवा भी नाम हैं ऐसा क्या  हो गया। क्या देख लिया या सुन लिया जो मुस्कराहट एकदम ख़त्म हो गई"- चील दूर से आती अवाज़ो को सुनती रही। कुछ नहीं बोली। कुछ समय बाद एक एक कर सभी चील की तरफ मुखातिब होते गए. ऐसा क्या हो गया जो चील आंटी खामोश हो गई। इधर चील के आँसूओ गिरने लगे। वो सब आंसुओ को टप टप गिरते देखते

सुशांत सिंह राजपूत बस अब मेरा आखरी अलविदा तो ले लो

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लेखक :- इज़हार आलम   (witerdelhiwala ) सुशांत सिंह राजपूत के लिए मेरी छोटी सी श्रद्धांजलि (Sushant Singh Rajput just take my last goodbye) बस अब मेरा आखरी अलविदा तो ले लो   bollywoodbinge "काश लॉकडाउन न होता काश कोरोना न आता इतनी मौत न होती काश। .. पर क्या वाक़ये काश होता हैं"-  ये मनहूस बाते कर रहा था दोमुख अपनी दोस्त चम्मूख से। जिसे हसमुख सुन रहा था और गुस्सा हो रहा था।  करता भी क्या गुस्सा बार बार होता और बेठ जाता रात काफी ग़हरी हो चुकी थी तो चुप था. पर दोमुख मनहूस बाते  किया जा रहा था। सूरज भी निकल आया पर दोमुख और चम्मूख की बाते ख़त्म न होने का नाम ले रही थी। सब परिंदे आ गए एक दूसरे का हाल भी मालूम कर लिया पर अभी भी दोनों की मनहूस बाते कोरोना में मरने वालो की गिनती ,इस कोरोना का क्या होगा और कितने मरेंगे। सब पंछी भी चले गए।  दोपहर में सूरज आग की लपटों को तेजी से बिखेर रहा था जिव जंतु सभी बेचेंन थे. परेशान थे इस  भीषण गर्मी से।टॉपमान ४२ से ४५ के आस पास रहा होगा। पर वो दोनों अब भी बतिया रहे थे। तक़रीबन ३ बजे हमारे पेड़ के निचे कुछ हल चल  बढ़ती हुई दिखाई दी.  मोहल्

"आप के बिना जीवन"

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"आप के बिना जीवन" जहाँ  जीवन की सुबह हम जाने।  जहाँ  हरा भरा जीवन मेरा। जहाँ  रंग बिरंगी सुबह हैं।  जहा बदलो की घटा हैं। जहा मचलती फ़िज़ा हैं।  जहाँ सुबहो का संगीत हैं।  जहाँ  लहराती हवा हैं।  जहाँ  बूंदों की टप-टप हैं ।  जहा  शाम का संगीत हैं ।    जहाँ  हरे हरे, पिले पिले रंग बिरंगे पत्ते हैं ।  जहाँ  फूलो की महक,  जहाँ  चन्दन की महक   जहाँ  जीवन की सुबह हम जाने।  जहाँ  हरा भरा जीवन मेरा। जहाँ बुलबुल की चहक  हैं।  जहाँ  हवाओ में नृत्य करते पंछी हैं।  जहाँ  ऐसे पेड़ हैं । जहाँ  जीवन की सुबह हम जाने।   जहाँ  हरा भरा जीवन मेरा। जहाँ  मिलेगा जीवन, जियेगा जीवन जहाँ  जीना हैं ।  हम जाये वहां।  जहाँ  इस डाल कूदू, उस डाल कूदू ।   इस कलि को छू लूँ,  उस कलि को देखूं।  इस फूल की महक , उस फूल की महक  जहाँ  जीवन की सुबह जीवन जाने। जहा हरा भरा जीवन मेरा।  चलो यू  चले उस संसार में जहा हो पंछिओं का घर।  लो छो लिया तुमको! अब !  पंछी बन मैं  गगन में उड़ा  जाता हूँ।  उस संसार में चला जाता हूँ।  मन में ख़ुशी लिए मैं चाहा कर  उड़ता जाऊं मैं गगन में उन पंछीओ के साथ जो प्रवासी हैं.  आते जाते छू लेते हैं

"जीवन बिन तेरे नहीं " "Life without you"

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लेखक  इज़हार आलम  ( writerdelhiwala) 5 June Environment Day जीवन बिन तेरे नहीं  गॉड इज़ आलमाइटी  "पेड़ की भूमिका" (“चलिए हम आपको लेख पढ़ने से पहले। इसकी भूमिका के बारे में थोड़ा समझा देते हैं।आप इसको नाटक/कहानी/वार्तालाप/लेख जो भी कहे पर हर शब्द उनकी ज़ुबानी। इस लेख को बयान किरदार करते हैं.और हम यानि “ इज़हार आलम” अपनी कलम से लिखते हैं। किरदार हमारे घर के सामने वाला पेड़ हैं। इस पेड़ के पत्तों के साथ साथ-साथ इस रहने वाले परिंदे। जो घोंसला बना कर इस पेड़ रहते हैं। पेड़ के क़िरदार या पात्र कहें सब पर्यावरण के मित्र हैं। जैसे - पेड़ के पत्तों में से पहला किरदार “हसमुख और दूसरा- “दोमुख” इसी तरह और भी नाम हैं इस पेड़ के पत्तों के। “चील आंटी” (जिनका बड़ा सा घोसला बना हैं इस पेड़ पर), “ तोते मियाँ”, “ गुररिया” (छोटी चिड़िया जो लुप्त हो गई), “कोयल” ओर बोहोत सारे परिंदे जो इस पेड़ पर रोज़ सुबह आ कर बैठ जाते हैं और बतियाते हैं । इनकी जुबानी आपके लिए।” ) "जीवन बिन तेरे नहीं " "आज रंग हैं री माँ आज रंग हैं माँ।   आज रंग हैं री माँ रंग हे माँ आज मेहबूब के यहाँ रंग हैं री माँ "