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ek khabar khabrchio ki "एक खबर खबरचिओ की"

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एक खबर खबरचिओ की" धुर्व राठी   बनर्जी भगत राम  परुष शर्मा  अभिसार शर्मा  "बात पेड़ की अंधभगतो से" मैं कौन ? में वही पेड़ हूँ जिस पर हज़ारो पत्ते सेकड़ो परिंदे रहते हैं और मेरी मिठास में लोग सराबोर रहते हैं। मैं  वही पेड़ हूँ जिस पर परिंदो के साथ साथ छोटी छोटी मधुमखिओ का छत्ता बना हैं परिंदो का अपना घर हैं। मैं वही हूँ जो अपनी छाओ में बैठने वालो को गर्मी से रहत देता हूँ, राहगीरो को सकून देता हूँ, बस सकून नहीं देता तो उन लोगो को जो इंसान को इंसान को लड़वाने का काम करते हैं. मेने सोचा सायद मुझे भी इन मुद्दों पर कुछ न कुछ लिखना चाहिए। पर मुद्दे तो बोहोत हैं मैं किस मुद्दे पर लिखु। आज के हालत पर. या आज की सरकारी नीतिओ पर या दोनों पर भी लिख सकता हूँ क्यूंकि अंधभगत तो हर चीज़ में अंधभगत हैं। सोचता हूँ मैं अंधभगतो के लिए दोनों बातो पर ही लिख दूँ। क्यूंकि दोनों एक दूसरे के पूरक हैं किसी पर भी लिख दू बात एक ही होगी। फिर सोचाता हूँ क्यूँ न गोदी मिडिया/रिपोटेरो के अंधे पन पर ही कुछ लिखूं/बताऊँबता सकता हूँ। जैसा बताया मैं कोई रिपोटर नहीं।  मैं तो एक पेड़ हूँ।  सायद कोई मेरी बाते भी संजीदगी

एक बात धर्मवीर के साथ

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एक बात धर्मवीर के साथ  धर्मवीर शौकीन नाम का आर्टिस्ट (स्कल्पटर) "स्कल्पटर की जिंदगी एक उस मूक कलाकार की तरह हैं जो बोलता तो कुछ नहीं, पर अपने शरीर के अंगो से वो सभी कुछ बोल कर समझा देता हैं जिसको एक बोलने वाला कहानी में सुना सकता हैं या एक फिल्म में चलचित्रो के माध्यम से समझा जा सकता हैं. स्कल्पटर के सकल्पचर ठीक वैसा ही प्रतीत होते हैं जैसे आप रोडिन का "दा थिंकर, डी.पी. राय चौधरी का "श्रम की विजय" हो।  या फिर संथाल परिवार हो जो रामकिंकर वेज जी न बनाया था। सभी मूक कलाकार की तरह अपना अपना प्रदर्शन कर रहें हैं। बस फर्क हैं मूक आर्टिस्ट अपना एक्ट ख़तम कर चला जाता हैं. पर ये मूक मूरत जो बोहोत कुछ अपनी मुद्राओ में बयां करती हैं। सदा के लिए वही खड़ी हुई सवाल भी करती रहती हैं इनको देखने वाला अपने विचारो को अपने मन में ही मूक जवाब को तालस्ता रहता हैं।" ध र्मवीर शौकीन (स्कल्पटर) नेशनल अवॉर्ड विजेता से मुलाकात कॉलेज में हुई हसमुख और काम का झुझारू पन उसमें साफ झलकता था धमवीर का काम करने का तरीका उसका मिडीयम और सबजेक्ट पर पकड़ उसके वर्क में दिखाई पड़ता था.