एक बात धर्मवीर के साथ


एक बात धर्मवीर के साथ 

धर्मवीर शौकीन नाम का आर्टिस्ट (स्कल्पटर)

"स्कल्पटर की जिंदगी एक उस मूक कलाकार की तरह हैं जो बोलता तो कुछ नहीं, पर अपने शरीर के अंगो से वो सभी कुछ बोल कर समझा देता हैं जिसको एक बोलने वाला कहानी में सुना सकता हैं या एक फिल्म में चलचित्रो के माध्यम से समझा जा सकता हैं. स्कल्पटर के सकल्पचर ठीक वैसा ही प्रतीत होते हैं जैसे आप रोडिन का "दा थिंकर, डी.पी. राय चौधरी का "श्रम की विजय" हो।  या फिर संथाल परिवार हो जो रामकिंकर वेज जी न बनाया था। सभी मूक कलाकार की तरह अपना अपना प्रदर्शन कर रहें हैं। बस फर्क हैं मूक आर्टिस्ट अपना एक्ट ख़तम कर चला जाता हैं. पर ये मूक मूरत जो बोहोत कुछ अपनी मुद्राओ में बयां करती हैं। सदा के लिए वही खड़ी हुई सवाल भी करती रहती हैं इनको देखने वाला अपने विचारो को अपने मन में ही मूक जवाब को तालस्ता रहता हैं।"


र्मवीर शौकीन (स्कल्पटर) नेशनल अवॉर्ड विजेता से मुलाकात कॉलेज में हुई हसमुख और काम का झुझारू पन उसमें साफ झलकता था धमवीर का काम करने का तरीका उसका मिडीयम और सबजेक्ट पर पकड़ उसके वर्क में दिखाई पड़ता था. 
     ग्रेजवेशन (BFA) जामिआ मिलिया इस्लामिआ दिल्ली से सकल्पचर में की और बनारस से मास्टर भी स्कल्प्चर में. वह रह कर अपने सकल्पचर की मूरत को बड़ी बारीकी से निखारा। बनारस से पड़ने बाद दिल्ली और बनारस में मशहूर जामिआ की प्रो लतिका कट मेडम (रिटायर) के स्टूडिओ में उनके अंडर में रह कर अपने काम को और निखारने लगा। वहा धर्मवीर ने मेटल कास्टिंग से लेकर पत्थर की कटिंग शेप को निखारना सीखा। जिसके बाद धर्मवीर का आर्ट वर्क को एक नया आयाम मिला। 
    गड़ी ललित कला स्टूडियो की रवि की केन्टीन में बैठ कर अक्सर ऑटिस्ट लोग आर्ट पर डिस्कस करते हैं।   वही मेरी लम्बी बातचीत धर्मवीर शौकीन से आर्ट को ले कर हुई। जब हमारी आर्ट पर बात चीत होती हैं तो चाय के पियाले की चुस्की लेते हुए उनका अपने आर्ट वर्क के बारे में गंभीर अंदाज़ से बातचीत करते हुए समझाना। वाकेई में एक अलग तरह के विश्स्वास को दर्शाता हैं। हम धर्मवीर की तुलना मशहूर आर्टिस्टों से तो नहीं कर रहे  पर मशहूर स्कल्पटरो जैसे रोडिन, मतिस आदि के वर्को को देखकर धर्मवीर के वर्क के विषय और टेक्नीक को सही तरीके को समझना धर्मवीर जीता जगता उद्धरण को दर्शाता हैं।

     धमवीर के हाथो में सुनार जैसी बारीकी और लोहार जैसी ताक़त लगती हैं। जब धर्मवीर के हाथ मेटल को कास्ट करते हैं मनो खुद मेटल कहता हैं में ये बनना पसंद करता हूँ में ये बनुगा जैसे सुनार सोने को गाला कर एक गेहने का रूप देता हैं धर्मवीर भी मेटल को पिघला कर उसके रूप को बहुमूलय बना देता हैं। मेटल को गले के हार सा निखर देता हैं। साथ ही धर्मवीर पथ्थरो पर मेटल के इस्तेमाल में भी माहिर हैं। पत्थरो पर छेनी के वार से अपना निशान छोड़ते जाना। जो धीरे धीरे अपने आयाम पर पहुंचता हैं। साथ ही सय्यम बरत कर पत्थर को एक सउरूप देता जाता हैं. पत्थर पर छैनी और छैनी पर हथोड़ी की खनक से संगमरमर को तराश कर बनाया गया हो. संगमरमर के पत्थर में ताश के पत्तो का धीरे धीरे उकेर कर बहार आना। उसके कुशल स्कल्पटर होने का प्रमाण हैं. उसके साथ मेटल के तास के पत्तो का पत्थरो में गाड़कर उकेरना हो या पत्थर को मेटल के साथ सम्मिलित करके उसका आकर बदलना हो जैसे ताश के पत्तो को घोड़ो के रूप में रेस लगते दिखाना, एक बड़े से गोल समतल संगमरमर पत्थर पर दौड़ते मेटल में तराशे पान के घोड़े हो या लकड़ी के रूप में जमीं का मैदान जिस के ऊपर मेटल में गाडे पान के पत्तो पर बने रेस लगते घोड़े। सभी धर्मवीर के कलाकार होने का प्रमाण हैं। 
        
            मानो बेजान पथरो में जान आ गई हो ऐसे सब्जेक्ट पर काम करना जो चुनौतिओं से भरा हो ये धर्मवीर शौकीन के लिए कोई न कोई नया अनुभव सीखने के लिए आता हैं हर सबजेक्ट को धर्मवीर अपने काम में जैसे दो पहिये हो और उसको बग्गी के लगाना कर बग्गी चलना जैसा होता हैं। फिर बग्गी पर सवारी करना आसान हो जाता हैं। यानि स्कल्पचर बनाना आसान होता जाता हैं। स्कल्पचर के लिए हर मटेरिअल को मिट्टी की तरह गुंदना और उसको आकर देना धर्मवीर को आसान बना  देता हैं। फिर सायद मुश्किल भी न लगता हो । उनका कहना हैं अगर काम आसान या मुश्किल कोई भी इसका अंदाज़ा नहीं लगा सकता किउ की काम जब आप करते हो किस तरह करते हो जब आप काम करते रहते हो  तो आप को तर्जुबा होता जाता हैं जिससे काम आसान या मुश्किल का फैसला  हो पता हैं, आसान आर्ट की परिभाषा वो हैं जो मुझे आता हैं और में कर चूका हूँ उसको करना आसान होता हैं पर जब आपको कोई चुनौती भरा होम वर्क मिलता हैं या अपना आर्ट वर्क करना होता हैं तो समझो यही वो घडी हैं जो मुश्किल हैं पर उसको किस प्रकार आसान बना या जा सकता हैं ये सोचने और करने वाली बात होती हैं वही मुश्किल काम आसान हो जाता हैं जब आप कर लेते हैं। आर्टिस्टों को चुनौतिओं के साथ बनाया काम ही जिंदगी में कुछ न कुछ सबक सिखाता हैं और मुश्किल काम में सिखने को बोहोत कुछ होता हैं। हर काम आपको हर रोज़ कुछ न कुछ सिखाता हैं, हम क्राफ्ट मेन नहीं हैं हम आर्टिस्ट हैं. हम को हर तरह का आर्ट वर्क करने में मज़ा आता हैं जिससे हमारी पहचान बनती हैं। 

        धर्मवीर अपने सब्जेक्ट का जब रफ स्केच तैयार करता हैं तो उसका बनाने का तरीका मटेरियल टेक्नीक आदि पर तभी होम वर्क कर लेता हैं और उसी रूप में अपने सब्जेक्ट को अलंकृत कर देता हैं. धर्मवीर को जानवरो के प्रति प्यार या नेचर के प्रति वफदारी ही हैं जो उसके वर्क में साफ दिखाई देती हैं। जीवन के सभी आयामों को दर्शाता। मुझे एक वर्क याद आया उसका "बेलो का एक समूह" जो पेड़ के इर्द गिर्द चलती रहती हैं मानो कन्हैया ने बासुरी की धुन पर उनको बुलाया हो जैसे कान्हा पेड़ के निचे खड़े हो कर मधुर संगीत अपनी बासुरी सुनते हैं और सभी गाये, बेल और जानवर उनके इर्दगिर्द इखट्टा हो कर बासुरी के उस मधुर संगीत से मदहोश हो जाना यही सब धर्म वीर के उस स्कल्पचर में दिखाई देता हैं।

    धर्मवीर जमीन से जुड़ा हुआ एक कलाकार हैं. मिटटी से प्यार और इसकी खुशबू से अपना पन महसूस किया हैं. अपने खेतो पर काम करना जानवरो के साथ उसका रहना। नजफगढ़ के छोटे से गावं दीनपुर की मिटटी शौकीन के रग रग में रची बसी हैं. इसी करण इसके स्कल्पचर में वही सब विषय मिलते हैं. तालाब के किनारे का सीन हो जो की वुड और मेटल के समावेश के साथ बनाया गया हो जिसको देखते ही रहने का मन करता हैं। या तालाब के पास का द्रश्य हो पेड़ो का झुरमट हो या चिडियो का झुण्ड जो के एक साथ दाना खाने आते हैं। ये स्कल्पचर देखते ही बनता हैं इसको देखते रहना मनो चिडियो से बाते करना जैसा हैं। हर चिड़िया दाना चुनने के साथ साथ एक दूसरे से बाते क्र रही हो या यू  कहे को गीत गन गुना रहे हो। इन चिडियो को बड़े ही सूंदर तरीके से मेटल में ढालकर आकर दिया गया हैं जैसे जीवित हो अभी कुछ कहने लगेंगी।  ऐसे विषयो को चुनना या मटेरियल का चुनाओ सभी पर सोच विचार कर निर्णिये लेना ही धर्मवीर का मूलमंत्र हैं. 
            
    हाथो में पकडे ताश के पत्तो को का स्कल्पचर जिसका टाइटल डेस्टिनी रखा गया हैं। 10 हाथों का समूह एक एक कर पत्तो को उसके सही ठिकाने पर डाल रहे हो जैसे तास खेलने वाले खिलाडी करते हैं धर्मवीर का कहना हैं के उसका सम्बन्ध आज की पोलटिक्स से भी। इसके साथ धर्मवीर मेटल के साथ भी खेलते रहते हैं सही मायने में सख्त मेटल को भी किस प्रकार पिघलाकर अपने पसंद का आकर दे देना। ये धर्मवीर से सीखा जा सकता हैं। मेटल से बने स्कल्प्चर को कभी बुर्ज नाम देते हैं कभी ओल्ड हाउस नाम के आकर में भी बदल देते हैं।
 
         मेटल में खेलने का हुनर इन्होने जामिआ की एक्स प्रो.लतिका कट के स्टूडियो में, मेडम के साथ बड़े बड़े स्कल्प्चरो में हाथ बटा कर अपना हुनर और निखारा हैं । धर्मवीर का बचपन का शोक धीरे धीर कब  प्रोफेशनल में बदल गया इसका अंदाजा धर्मवीर  को पता ही नहीं चला। धर्मवीर कहते हैं  जिंदगी में अगर सांसो का संबंध हैं ठीक वैसे ही मेरा सम्बन्ध काम से ,अगर काम नहीं तो में नहीं। मेरा काम ही आत्मा हैं जैसे आत्मा शरीर के लिए जरुरी  हैं। ठीक वैसे ही धर्मवीर के लिए काम जरुरी हैं। इस जिंदगी में बिना आत्मा के कुछ नहीं  फिर ये शरीर मृत शरीर जैसा। 
धन्यवाद। 
    

लेखक 
इज़हार आलम 
(राइटरदिल्लीवाला )

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