ek khabar khabrchio ki "एक खबर खबरचिओ की"

एक खबर खबरचिओ की"


dhorv rathee
धुर्व राठी 



 बनर्जी
भगत राम 
परुष शर्मा 
अभिसार शर्मा 




मैं कौन ? में वही पेड़ हूँ जिस पर हज़ारो पत्ते सेकड़ो परिंदे रहते हैं और मेरी मिठास में लोग सराबोर रहते हैं। मैं  वही पेड़ हूँ जिस पर परिंदो के साथ साथ छोटी छोटी मधुमखिओ का छत्ता बना हैं परिंदो का अपना घर हैं। मैं वही हूँ जो अपनी छाओ में बैठने वालो को गर्मी से रहत देता हूँ, राहगीरो को सकून देता हूँ, बस सकून नहीं देता तो उन लोगो को जो इंसान को इंसान को लड़वाने का काम करते हैं. मेने सोचा सायद मुझे भी इन मुद्दों पर कुछ न कुछ लिखना चाहिए। पर मुद्दे तो बोहोत हैं मैं किस मुद्दे पर लिखु। आज के हालत पर. या आज की सरकारी नीतिओ पर या दोनों पर भी लिख सकता हूँ क्यूंकि अंधभगत तो हर चीज़ में अंधभगत हैं। सोचता हूँ मैं अंधभगतो के लिए दोनों बातो पर ही लिख दूँ। क्यूंकि दोनों एक दूसरे के पूरक हैं किसी पर भी लिख दू बात एक ही होगी। फिर सोचाता हूँ क्यूँ न गोदी मिडिया/रिपोटेरो के अंधे पन पर ही कुछ लिखूं/बताऊँबता सकता हूँ। जैसा बताया मैं कोई रिपोटर नहीं। मैं तो एक पेड़ हूँ। सायद कोई मेरी बाते भी संजीदगी से न ले. मैं भी एक देश जैसा ही हूँ अकेला तो में भी कुछ नहीं कर सकता मेरे दोस्त पत्ते, परिंदे, कीड़े-मकोड़े और वो इंसान जो मुझे ज़िंदा रखने में मेरी मदद करते हैं. मेरी अपनी सरकार चलाने में मदद करते हैं वो मेरा, मैं उनका ख्याल रखता हूँ। इस चक्र से कोई एक कड़ी भी हैट जाये तो सायद में ज़िंदा न रह पाऊं। पर लानत हैं इन गोदी मिडिया पर. फिर सोचा इन पर भी क्यूँ लिखुँ। पर फिर आज मेने सोचा ऐसे विषयों पर कुछ तो लिखा/बताया  जाये। इन पर ऐसे ढेरो लेख लिखे जा चुके हैं पर अब तक कोई बड़ी हल चल नही मची। जैसा मैंने बताय मैं कोई मीडिया वाला तो नहीं या यूँ कहूं के बिकाऊ मिडिया-पेड़ वाला नहीं। में पेड़ हूँ। 
         गोदी गोदी ही चल रहा हैं सुबह शाम। सच बोलने वाले काम ही एंकर बचे हैं।  या यू कहें मिडिया हॉउस बचे हैं। पर आज के मिडिया की सही जानकारी पब्लिक को न बता पाने की वझे से पुब्लिक परेशान हो चुकी हैं अब दूसरे माध्यमों से लोग इनमें शामिल होते जा रहे। अपना यूट्यूब चैनल बना कर इंस्टाग्रम पर न्यूज़ देकर। टिव्टर पर अपना रोष को ही प्रकट करना। फेसबुक पर रिपोटिंग हो या लेख लिखना हो। इन गोदी मिडिया को बे किसी न किसी माध्यम से नकाब करने में लगे हैं. साथ में सरकार की नीतिओ की कमी को भी बेनकाब करने में लगे हैं। देश में बड़े बड़े रिपोर्टर हैं पर फिर भी सही आवाज़ कोई नहीं उठता। 
        मैं तो रविश कुमार या धुर्व राठी जैसा भी ब्लोगर नहीं जिसको "चार मिलियन" लोग पसंद करते हो। लोग उनकी बात ध्यान से सुनते/पड़ते हैं। रविश जी का तो में पसांग भी नहो हो सकता। अगर मैं उनकी लेखन की एक धुल भी बन जाऊ तो भी मेरा उद्धार हो जायेगा। फिर भी में अपने आपको उनके सामने धूल का कण भी नहीं मानता। मैं एक पेड़ हूँ। 
        आज कल सभी को जल्दी फेमस होने के लिए एक ही तरीका पता हैं टिक टोक की विडिओ की तरह हरकत करते रहो लोग एक न एक दिन फेमस तो कर ही देंगे चाहें आप पर हसे या आपकी हालत पर तरस खाये। ऐसे टॉपिक अब सरकार किसी और प्लेटफार्म पर दिखाना चाहती हैं। पर मेरा लेखन और जिनकी मैं बात कर रहूं उन सब की लेखनी/विडिओ सिर्फ और सिर्फ उन सामाजिक मुद्दों पर केन्द्रित होती हैं जिन पर गोदी मिडीया मूक ही नहीं बेहरी भी  बानी रहती हैं। उनको बस हिन्दू मुस्लिम का हॉट टॉपिक चाहिए होता हैं। मैं अभी इस लेख में गोदी मीडिया के बारे में बात नहीं करूंगा क्यूंकि लोग मुझे भी उसी लाइन में खड़ा कर वैसी वैसी बाते सुनाएंगे जिनका में हकदार मैं नहीं हुंगा। वैसे क्या बुराई हैं उनकी गालिओ में. गालिओ के लिए लाइन में खड़ा होना। इस लाइन में बड़े बड़े राजनेताओ से लेकर बुद्धिजीवी लोग खड़े हो रहे और भी हैं लोग जो इस लाइन में तो नहीं खड़े पर उनको खड़ा कर दिया जाता हैं जो सच बोले वो लोग शामिल होते जा रहे. जिस तरह ये लोग काम कर रहे हैं लगता हैं जल्द ही सरकार पर भी पूरा कब्ज़ा अंधभगत का होगा।होगा क्या वो हो चूका। इससे तो लगता हैं सिर्फ अंध भगत ही सरकार को चलाने में सक्छम हैं। जैसा हो भी रहा हैं। सॉरी। मेने सच बोला। सॉरी।  में एक पेड़ हूँ इंसान  नहीं गलती  जाती हैं ख़ैर 
अब तक तो सरकार को चलने के लिए अंधभगतो की कमी नहीं जो अंधभगत नहीं होता वो सरकार में पद पाने की लालसा में अंधभगत हो चलता हैं। अगर हालत ऐसे ही चलते रहे तो देश हिटलर के ज़माने का जर्मन जैसा रूल और हालत कब बन जाये कह नहीं सकते। पल पल उसी और बढ़ रहें हैं हम। देखलो हालत सेमे वैसे ही होते जा रहे क्या सही कहा हैं किसी भले मानस ने - 
"जिसको चाख्खे अंधभगत खीर, उसका मुख भरे गीत।
 जिसका जग में कोइना हौव्वे उसका, उसका गीत न सुने कोई। 
        
            अब मेने सोचा मुझे भी इसी कड़ी में जुड़ जाना चाहिए क्यूँकी दोस्तों मैं, अंधभगतो में जल्द फेमस भी हो जाऊंगा (हूँ तो में एक पेड़ ही) और हो सकता हैं  मजाक मजाक में सच्चाही भी लिख दिया करूंगा। चाहें किसी अंधभगत के जबान पर आग ही क्यूँ न लग जाये। जैसे इन लोगो के बोलने/लिखने से होता हैं। 
रविश कुमार, विनोद दुआ, बरखा दत्त, अंजुम, परशुन बाजपाई, धुराव राठी, अरफ़ा खानम शेरवानी,  पारुष शर्मा, अभिशार शर्मा, भगत राम, आकाश बनर्जी (हिंदी के लिए ) ये वो विख्यात नाम हैं,और भी हैं। ये वो लोग हैं जो हिंदी के पड़ने वालो के लिए सच्चाई बोलते हैं और लिखते हैं। 
            ये फहरिस्त जो अभी मैने ऊपर बताई इन नामो ने बोहोत उन अंध भगतो की दिमाग से पट्टी हटाने का काम किया हैं और आगे भी जारी हैं। इसके कारण इन लोगो की जान माल को भी खतरा ज्यादा रहता हैं. वैसे सरकार के खिलाफ बोलने वालो के पीछे सबसे पहले सरकार ही पीछे पड़ती हैं। जब कुछ नहीं मिलता तो अपने अंध भगतो को लगा देते हैं जिसमें आई. टी. सेल के लोग होते हैं फिर चालू होता हैं इन सभी लोगो के खिलाफ एक परोपरगेंडा जिसमें फेसबुक हो इंस्टाग्राम हो ट्विटर हो या दीगर माध्यम हो उन पर गाली गलोच का जो सील सिला शुरू होता हैं वो देखने के साथ पड़ने योज्ञ सहित्ये का एक सुनहरा पन्ना होता हैं जिसका एक एक शब्द अंध भगत अपनी कौशल से ढूंढ कर लाते हैं और लेखक के पेज़ पर चैप देते हैं अब उनके मालिक ख़ुश होते हैं. इसके एवज में ५० पेसो से लेकर 2 रुपए तक अता कर देते हैं  यहाँ एक नाम का ज़िक्र करना जरुरी हैं  "पारुष शर्मा" ये वो एंकर हैं जिनका यूट्यूब पर अपना एक चैनल हैं जो अंध भगतो को ही सही से उनके असली नाम से पुकारते हैं और उनका शुध्दि कर्ण का काम करते  रहते हैं। इनके विचार से भरे शब्द सायद आपको सुनने चाहिए किस तरह ये अंध भगतो को सीधे सीधे बतियाते हैं। जब जब सरकार गलत साबित होती हैं। किसी आदेश पर.या कानून पर, तो "पारुष शर्मा" उसको भी घेरने से बाज नहीं आते. चाहे अंधभगत सुने या सुन्नते सुनते भाग जाये या इनको ट्र्रोल करे ये मानते नहीं। आप सभी इनका ये यूट्यूब चैनल देखना चाहिए निचे लिंक भी दे रहा हूँ। देखिएगा जरूर। अब हम बात करते हैं उनकी जो कभी मशहूर न्यूज़ चैनल के एंकर रहे, और सरकार की वही रहते धज्जिया उड़ाने में कोई कसर नहीं राखी थी। जिसका खामयाजा उनको अपनी नौकरी गवा कर देना पड़ा. सरकार की चापलूसी नहीं की तो सजा तो मिलनी थी। काश करी होती तो। सुना हैं अब कोई मिडिया वाला नौकरी नहीं देता उनको क्यूँ की उनका रूतबा उनसे उचा हो चूका हैं वो कहते हैं की जब इंसान को सूफ़ियात मिल जाती हैं वो अंधभगतो से ऊपर हो जाता हैं। वो जो कहता हैं वो एक एक शब्द नपे तुले सच्चाई के सोरबे में लपेटे हुए होते हैं. जिसको चखने/सुनने वाले को मजा आता जाता हैं और वो उस शोरबे में लिपटे लुक़मो को बड़ा आनंद लेकर खाता रहता हैं। 
उन  सुफियान शख्स का नाम "पुण्य परशुं वाजपाई" हैं। इनके अंदर भी सरकार की नीतिओ में झोल को पकड़ कर उसका रस निकालने में महारत हासिल हैं। उस रस का मज़ा वो लोगो को सच्चाई का रस नाम से पिला कर लेते हैं। इनका भी यूट्यूब पर अपना चैनल हैं ये लिखते भी बड़ी ईमानदारी से हैं। इनसे भी एक ख़ास पार्टी विशेष के प्रति निष्ठा रखने वाले अंध भगत ज्यादा खफा रहते हैं। अंधभगतो को सूंदर सूंदर भाषा पढ़नी/सुननी ज्यादा अच्छी लगती हैं। ये भी सरकार और अंधभगतो की नज़रो में फालतू/गद्दार पत्रकार हैं जो ऊलजलूल बाते करते हैं इनका इलाज भी करने को कहा गया हैं किसी अच्छे अंधभगत कॉलेज में। सायद सुधर जाये पर सच कहने वालो से तो पागलो का इलाज करने वाले डॉ. भी बचते हैं. ये अंधभगत क्या हैं। इनका पागल खाने के लिए भी खतरा देख भय से डॉ. इनके  पिंजरे के दरवाजा रात में  खुल्ला छोड़ देते हैं और अंधभक्त गार्डो को हटा दिया जाता हैं।  ताकिं परशुं वाजपई जी वहाँ से चुपचाप चले जाये नहीं तो फिर और भी तरीके हैं इन भागने के वह से इन कम्भख्तो के पास। खेर छोड़िये अब आगे बढ़ते हैं एक नाम और बताते हैं जो सरकार के विद्रोही गुट के लगते हैं क्यूंकि इनकी भाषा भी सरकार को हजम नहीं होती। इनको भी अपनी ज्वॉब यानि न्यूज़ एंकर नौकरी गवानी पड़ी जी है ये हैं मिस्टर "अभीसार शर्मा" इनकी वाणी इतनी तीख़ी व सूंदर हैं के सरकार के गले में बार बार अटक जाती हैं जैसे कोरोना कई दिनों तक अटका रहता हैं गले में। सरकार को बार बार फेंसिड्रिल सिरप को पीना पड़ता हैं। इनकी आवाज इतनी बुलंद हैं की अंधभगत घबरा जाते हैं इनका भी "पुन्निया परशुं वाजपई" की तरह न्यूज़ चैनल से पत्ता कटा गया।  सच बोलने वाले को सरकार में बैठे लोग पसंद नहीं करते, मगर सवाल ये हैं के कब तक पसंद नहीं करेंगे एक दिन तो सरकार को अपनी सोच को बदलना पड़ेगा कब तक दाल खाएंगे जनाब कभी तो मिक्स वेज भी खाने की चाहत भी होगी वो भीया शाही पनीर की खुआईश के साथ साथ  जमा मस्जिद के कुरैशी के कवाब या जहाँगीर की निहारी के साथ। एक और नाम जो सरकार की तारीफ मज़ाकिया अंदाज में कर के अंधभगतो को हँसा हँसा कर नोकीली कीलो पर बिठा देता हैं. और जब वो बैठते हैं तो हसी के साथ उइ उइ की आवाज हा हां हां हां उइ  उइ  दोनों साथ आती  हैं।  भगत राम वैसे तो सरकार का नहीं मोदी जी का भगत हैं उनकी तारीफ करता रहते हैं मगर अंधभगतो को वो मोदी जी की तारीफ सेहेन नहीं होती और वो भगत राम को लम्बी लम्बी गालिया जिसका ज़िक्र में नहीं करसकता वो करते हैं।  अरे भाई तारीफ़ पसंद नहीं तो और क्या करे वो बेचारे उनका तो काम ही तारीफ करना हैं  क्यूंकि वो बड़े वाले भगत हैं अंध नहीं केवल भगत। पर अंध भगतो को क्यूँ  पसंद नहीं आता मालूम नहीं। वो भी ००:50 पेसो से २ रुपए लेकर भगत राम को भी ट्र्रोल करते हैं पर कसम हैं "भगत राम" को वो मोदी जी के  बारे में जो एक शब्द भी गलत बोलते हो, ना जी ना ऐसा कतई नहीं हो सकता। बस उसका कहा मोदी जी को तो रास आजाता होगा पर मोदी जी के अंधभगतो को रास नहीं आता होगा , ना, ना आये इससे भगत राम को क्या वो तो मोदी जी का भगत हैं बस।  हां हां हां हां। एक बार जरूर देखना/सुनना। भाई  साहब सायद आप भी भगतराममोदी जी के भगत हो जाये लिंक निचे हैं।

        अब बात करते हैं चालीस लखियाँ की "धुर्व राठी (40K) "की जिसके चाहने वालो में, मैं भी एक हूँ मेरी तरह 39 लाख 99  हज़ार 999 लोग और भी हैं जो धुर्व राठी को चाहते हैं।  हरयाणवी छोरा हैं पढ़ा जर्मन में हैं भाई स्कूलिंग भारत (इंडिया) से ही की हैं घबराओ नहीं अभी ये भारत की मिटटी से जुड़ा हैं। इनके बारे में आप लोग सभी जानते हैं जब इन्होने शुरू किया तो कोई नहीं जानता था जैसा होता आया हैं नए को कहा हजम करते हैं हम भारतीय।  हमें  इतनी जल्दी कहा पसंद आता हैं  जब तक गन्ने को छिलने में मेहनत न लगे और उसको दातो से काट कर धीरे धीरे मुहं में उसका रस चूसने में जो मजा हैं उसका जवाब ही कहा हैं हम धीरे धीरे रस का आननद लेते हैं। तभी तो धुव राठी जैसा एंकर मिलता हैं जिसने सरकार की गलत नीतिओ की चर्चा अपने यूट्यूब चैनल के ज़रिये किया था और अभी भी कर रहे हैं। उनका नमस्कार कहने का अंदाज़ हो, जिसका खामयाजा भी भोकातना पड़ता हैं। वैसे गालिओ के अलावा और मिल भी क्या सकता हैं। इनको भी अंधभगतो ने टारगेट करना शुरू कर दिया था पर धुर्व राठी इंडिया में कम, ज्यादा तर बहार विदेश में ही रहते हैं। तो इतना फर्क नहीं पड़ाता। पर सरकार के चाहने वाले उनको अच्छी अच्छी वाणिओ से धोते रहते हैं जैसे माँ की बहन की में और क्या बताऊँ। धुर्व कभी इन लोगो के हत्ते नहीं लगे. ढूंढा बोहोत मगर मिले नहीं। मिले तो रवीश कुमार को जिन्होंने उनको अपने प्राइम टाइम में बुलाया और उनका एक इंटरवियु किया जिसका धुर्व राठी काफी बेबाकी से जवाब दिए। "धुर्व राठी" ने सभी सवालो के जवाब दिए जिसके बाद सायद धुर्व राठी और मशहूर हो गए, होता हैं होता हैं एक खाश सोच के चाहने वाले मिल जाये वो आपके चाहने वाले आपको अपनी पलकों के मचांद पर बिठा लेते हैं. लेकिन धियान रहे पलके हैं झपकी लगते ही फिसलन भी बन जाती हैं ये पलके। इस एपिसोड को आप ndtv के यूट्यूब चैनल पर देख सकते हैं साथ ही धुर्व राठी के चैनल पर भी पर देख सकते हो जो यूट्यूब पर भी। "धुर्व राठी", "रविश कुमार" के बाद सबसे ज्यादा चाहने वाले इंकारो में से एक हैं. वो अपने गले से सिर्फ सच वाणी को बहार निकलते हैं चाहे वो सरकार की किसी अच्छी निति ही क्यूँ न हो या फिर नाकामीयो से भरी कोई निति ही क्यूँ न हो। इनका वैसे ग्लोबल न्यूज़ पर भी फोकस रहता हैं। "धुर्व राठी" की गले की कलम से वही निकला जो सच होता हैं तभी मैं भी उनके 40 लाख में शामिल हो गया। पर 40 लाख का मतलब सर पर चाढ़ जाना नहीं होता। सच बोलना। सच का बेबाकी से बोलना बस यही कलम की शियाही हैं जिससे सच ही लिखा जाये सोच ही बोला जाये।  

        मुशाफिर और भी इस सफर में  जिनको काटो का ताज पहन कर सफर करना पड़ता हैं। उनकी जिद बन जाती हैं सच के साथ रहना ताज चुभता बोहोत हैं खून निकलता बोहाहट हैं। साथ ही इस सफर में लोहे के मोटे मोटे जुटे पहन कर चलना पड़ता हैं। जिनको पहन कर लम्बा चलना मुश्किल हो जाता हैं.सर पर काटो का ताज हैं। ऐसे ही एक ओर हम सफर हैं. "भगत राम" की तरह जिसको हम "आकाश बनर्जी" के नाम से जानते हैं।  इनका यूट्यूब चैनल आकाश बनर्जी के नाम से ही हैं इनका अंदाज़ भी भगत राम की तरह निराला हैं  इनकी रिसर्च वर्क और हालात को उसे जोड़ कर दिखाना कबीले तारीफ़ हैं इनकी एक रिसर्च के बारे में में बात करना चाहूंगा जिसमें इन्होने  हिटलर की तनाशाही के बारे में बतलाया साथ ही भारत के मौजूदा हालत के बारे में भी बताया ये वीडियो देखने साथ समझने की भी हैं। इनका भी अंध भगतो ने बहिष्कार करा हुआ हैं क्यूंकि ये भी सरकार की तारीफ ज्यादा करते हैं? आकाश उन लोगो का साक्षात्कार करते हैं जो सरकार की निति को चेलेंज करते हैं चाहे वो इस्कोनॉमिस्ट का ही क्यूँ न हो देश जब चाइना से बच रहा रहा तब भी इनका वांचुंग वागडू (लद्दाख) का इंटरवियू का रिप्लीका तैयार कर सब को दिखाया था। इनका एक ओर करेक्टर हैं। चश्मा पहने कर और वो भी कला चस्मा हैं वो आप समझदार हैं कला ही चस्मा क्यूँ पहना हैं। वैसे ही सवाल दागता हैं बनर्जी जैसे अंधभगत कमेंट्स बॉक्स में लिख कर भेजते हैं अपने शो में शामिल होने वाले  मेहमानो से जैसे अंधभगत यानी काला चस्मा पहने अंधभगत यानि भगत बनर्जी। बस फर्क इतना हैं वो मज़ाकिया होता हैं डरावना तो बिलकुल नहीं और उससे अंधभगत उलटे डरते हैं क्यूंकि उनके सवालो को आकाश बनर्जी उठाते हैं और उनको जवाब सुना कर अपने खिलाफ होने वाले षडयंत्र के शब्दों के वारो से बचने की कोशिश करते रहते हैं पर.. पर ऐसा हो नहीं सकता जहा अंध भगत हो वहा  आकाश बनेर्जी जैसो को तो कीलो का तख्त पर बिठाने की पुरजोर कोशिश होती रहती हैं। मगर अंधभगत ही उस पर विराजमान करने के चक्कर में खुद ही अपना तम्बोला किलो के सेज़ पर रख देते हैं। जहां फिर आवाज़ों का बेसुर गीत निकलता होगा, जैसे उइ उइ उइ की आवाज के साथ में  @$#%$#&$#%#$%@ भाषा का इस्तेमाल भी हो जाता हैं वो करना नहीं चाहते पर किलो की चुभन भगवान् दुश्मन को भी न बिठाये। हाय हाय। 
अगले लेख में हम सीनियर पत्रकारों के बारे में बात करेंगे जैसे | 
 विनोद दुआ। रवीश कुमार।  बरखादत्त। खानम शेरवानी और दीगर पत्रकार फेमली 
अब में भी पेड़ हूँ थक गया लिखते लिख़ते तो अब तारीफ बोहोत हो चुकी अरे कहा न अब आराम का टाइम हैं शाम के 7 बजे हैं अब पूरा आराम चाहिए मेरे चाहने वाले आ गए मेरी डालो पर बैठे हैं अब उनसे कुछ बाते कल भी लिखना हैं ओके और है पेड़ो का ख्याल रखना।  और हो सके तो बरसात हैं नया पौधा जरूर लगाना और उसका ख्याल भी रखना।  नमस्ते | 




https://www.youtube.com/user/dhruvrathee  (धुव राठी )

https://www.youtube.com/user/akashban  (आकाश बनर्जी ) 



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