The language of evergreen trees and their leaves.सदाबहार पेड़ और उनके पत्तो की जबान part 2

Every tree says something, I have started writing on this subject. Some things happen on the tree. On which there is a story between the leaves and the living birds who tell each other the day-to-day story. They are written in Hindi but will translate it into English, and Urdu too.


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पत्तों की जुबानी। मेरी कलम से

पत्तों की जुबानी। मेरी कलम से

चलो में थोड़ा सा आपको इन पेड़ो के पत्तों के भूमिका सुना दूँ।  ताकि आप इन की कहानी  समझ सके। ये पेड़ यहाँ हमारे बचपन से नहीं था।  यु कहें के ये पेड हमारे पैदा होने के बाद इस जगह लगाया गया था ये एक प्रीमेरी स्कूल हैं और इसी  स्कूल में हम भी पड़े हैं हमारे जैसे काफी हरामी - गिरामी बच्चे पड़े हैं वो अलग बात हैं यही से पढ़  कर कुछ बच्चे अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका और न जाने कहा कहा जा पहुंचे हैं,। देखने में ये बेकार सा होगा पर हमारे से पूछो ये हमारे लिए खेलने का मैदान था  पड़ने का तो मन काम था। बस इसका मैदान उस समय बड़ा था।  या ये भी कह सकते हैं हमारी टांगे  भी छोटी थी। जिसके कारण  हम को मैदान  बड़ा लगता होगा।  ये वाली बिल्डिंग भी नहीं थी पुरानी पड़  चुकी बिल्डिंग के चारो तरफ बहुत सारे पैड लिपस्टीक के लगे थे जो तेज आंधिओं में उखड गाये या टूट गए।  बिल्डिंग की छत सीमेंट की चादरों से बानी थी इस स्कूल के एक तरफ हिंदी मीडियम और सामने वाला उर्दू मीडियम में तब्दील हो चुका था। तब ये  पैड बहुत छोटा था। जिसकी देख-रेख तो हम करते रहते थे। धीरे धीरे ये पैड बड़ा होता गया और हम बिज़ी होते गए।  हमने पानी देना छोड़ दिया अब हम बड़े स्कूल और कॉलिज जाने में मशगूल हो गए थे। हम को देखने के लिए ढेरों दोस्त मिल गए थे।  इसके साथ साथ हम पर भी जवानी छाने लगी थी। इस पर तो साल में एक बार जवानी आ ही जाती हैं।  हमारी तो अब जवानी अब घटती जा रही हैं। हम इसकी बात कर रहे थे। इसकी जवानी कब आई पता ही नहीं चला। क्योंकि हम भी जवान हो चले  थे। समझ रहे हैं न, हमारी भी नई नई ख्वाईश  बढ़ती जा रही थी।  हमने सारा टाइम पड़ने में लगा दिया।  मगर इसकी और न देखा। बेचारा। हमें प्रकृति का आनंद  लेना हो तो हम तो घूमने निकल पड़ते। पहाड़ों की ख़ूबसूरती को देख हम मदहोश से हो जाते. वहाँ की वादिओं में मीठे-मीठे गीत गुनगुनाने लगते।  .

दिल हे छोटा सा, मस्तीभरे मन की, भोली सी आश,चाँद तारो को छूने की आशा, 
.आसमानो में उड़ने की आशा , दिल हे छोटा सा, छोटी सी आशा…
महक जाए तू  आज तो ऐसे  फूलबगियाँ  में महके हो जैसे .....”

 लम्बे घने पेड़. रंग-बिरंगे फूलों से सजे पहाड़। मानो खुदा ने जन्नत की चादरों को बिछा रखा हो. वादीओ में भीनी-भीनी खुशबू ऐसी के, मन अठखेलिया खाने को मजबूर हो जाता।  खुल्ले मैदान के चारो और पहाड़ों का खुशनुमा मंज़र। अपने दिल में बसा लेने का मन करता है।  सुंदरता का न भूलने वाला पल, जिंदगी का सबसे मनपसंद पल बन जाता हैं। जिंदगी वो पल-पल जीने का मन करता हैं.

 हम काफी पैसा खर्च करके इन खूबसूरत वादीओ पर जाने का मन करता हैं इन पर सेकड़ो सालो से बसे पेड़ो पौधों का आनंद लेने निकल जाते हैं। पर हम उन पेड़ो की छटा छोड़ देते हैं। भूल जाते हैं. यहीं पर इनकी छाया है। जब भी समयँ मिलता हैं इनके निचे बैठ कर, ठंडी ठंडी हवाओ का आनंद लेते हैं।  कभी चादर बिछा कर तास के पत्तों का खेल खेलते हैं।तो कभी चोपाल लगा कर हठखेलिया करते हैं। गाँव के पेड़ो की डालो पर झूले झुला करते बच्चे, लड़कियाँ अपने लिए अलग से पेड़ पर झूला डाल कर हट खेलिए करती हैं। आंगन में लगे पेड़ के निचे बचपन कब जवान हो जाता इसका पता भी न लगता उस पेड़ से स्नेह जो हो चुका होता हैं.  तेज बारिश में भीगने से बचने के लिए इनके नीचे छुप ने की कोशिश करते और जब पेड़ पूरा बारिश के पानी से सराबोर न हो जाता तब तक हमे बारिश से बचा कर रखता। 

हम भूल गए. खूबसूरती हमारे आगन में।  हमारे सामने सड़को पर, पार्क में अभी भी हमारा इंतज़ार कर रहे हैं। वो भी छोटे बच्चे की चाहत की तरह हमको देखते हैं पुकारते हैं। आओ और खेलो हमारे साथ. हम तब भी थे जब तुम नहीं थे। पेड़ो की खूबसूरती का एहसास हमें इस लोकडाउन में हुआ। में अब सोचता हूँ क्यूँ हम इतने सालो से इनसे गुमराह क्यूँ हो गये थे। मेरे पास तो खूबसूरती यहाँ भी थी। लगता हैं मैं जिंदगी में कही खो गया था।

“तुझसे से नाराज़ नहीं जिंदगी , हैरान हूँ मैं , तेरे मासूम सवालों से परेशान हूँ में,” 

“ तेरे बिना ज़िंदगी से कोई शिक़वा तो नहीं, तेरे बिना ज़िंदगी भी लेकिन ज़िंदगी नहीं”

मेने इस पेड को जवानी से बुढ़ापे की और फिर जवानी के अंकुर फूटते  हुए देखा हैं।  इसके सुर्ख़ फूलों की छठा, वातावरण को मदहोश किये जाती हैं जैसा मुझे हिमाचल का वो “चीलकूट” याद आता हैं. जहाँ की हरी और सफेद चादर सी बिछी वादिओं की छटाओं का बिखरे रहना। जिसकी खुसबू मुझे इस पेड़ से आती हैं ये पेड उस  जगह की खुबसुरती का एहसास दिला जाता हैं।

इसके हरे पत्तों से कुछ बाते करते हैं। हम धीरे धीरे  इनकी 30-40  दिनों की वार्तालाप आपको  दिन प्रति दिन सुनाएंगे। शायद आपका भी हरी भरी प्रकृति से मन लग जाये। इस पेड़ के पत्ते बोलते भी हैं ये अनोखा पेड़ नहीं हैं।  बस इसको देखने का, पत्तों की आवाज़ों को सुनने का एक अलग ही मन चाहियें। इनकी गुफ़्तगू ज़रा हट कर हैं ।

तो सुंनिये इन पत्तों कि ज़बानी।  
लेखक
ईज़हार आलम  (writerdelhiwala)

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Verbose of leaves. with my pen

Let me tell you a little bit about the role of the leaves of these trees. So that you can understand the story of these. This tree was not here since our childhood. Yu say that this tree was planted in this place after we were born, it is a primary school and in this school, we are also lying like a lot of bastard children like us, they are different. , Africa and not knowing where to go. It would be a bit useless to see, but ask us this was the playing field for us, it was the work of the mind to fall. Its ground was large at that time. Or we can also say that our legs were also small. Because of which we will find the field big. This building was not even there.A lot of pads around the old building were covered with lipstick, which were torn or broken in the strong storms. The roof of the building was made of sheets of cement, on one side of this school was converted into Hindi medium and the front Urdu medium. The pad was very small then. Whom we used to look after. Gradually these pads grew and we became busy. We stopped giving water, now we were busy going to big schools and colleges. We got many friends to see. Along with this, we also started to filter youth. On this, youth comes once a year. Our youth is now decreasing. We were talking about it. I did not know when his youth came. Because we were too young. Are you thinking that our new desire was also increasing. We put all the time into reading. But did not see it anymore. helpless. If we wanted to enjoy nature, we would have gone for a walk. Seeing the beauty of the mountains, we would get drunk. Sweet songs used to hum in the wadis there. . "Heart is small, fun-filled heart, naive hope, hope to touch the moon stars, hope to fly in the sky, heart is small, little hope ... Smell you today in such flowers, as if .. ... "  " Tall dense trees. Mountains adorned with colorful flowers. It is as if God has spread the sheets of Jannat. In the courts, the fragrance of the soul is such, the mind is forced to eat hard. A pleasant view of the mountains and mountains around the Khulle Maidan. Wants to settle in his heart. The forgettable moment of beauty becomes the most cherished moment of life. He wants to live life every second.  We feel like spending a lot of money to visit these beautiful birds, but the trees settled for hundreds of years go out to enjoy the plants. But we leave the shade of those trees. Forgets. It is their shadow here. Whenever you get time, sit below them and enjoy the cool breeze. Sometimes, they play a game of tass leaves by laying a sheet, and sometimes they chuckle with a chopper. Children swinging on the trees of the village, swing the girls by playing a swing on the tree for themselves. When childhood becomes young under the tree in the courtyard, it is not even known that there is affection with that tree. Trying to hide under them to avoid getting wet in the strong rain, and kept us from the rain until the tree is full of rain water. we forgot. Beauty in our fire. On the streets in front of us, we are still waiting in the park. They also look at us like wanting a little child. Come and play with us. We were even when you were not. We realized the beauty of trees in this lockdown. I now think why we had been misled by them for so many years. I had beauty here too. Looks like I was lost somewhere in life. "Life is not angry with you, I am surprised, I am troubled by your innocent questions," "There is no conflict with your life, life without you but no life" I have seen this tree growing from youth to old age and then sprouting from young. The sixth of its tulip flowers, the atmosphere is plastered as I remember that "chilakoot" of Himachal. Where the shades of green and white sheets are scattered. Whose smell comes from this tree, these trees make me feel the beauty of that place. Let's talk something with its green leaves. We will gradually tell you their conversation of 30-40 days day by day. Maybe you also feel like a green nature. The leaves of this tree also speak, they are not unique trees. Just want a different mind to see it, listen to the sounds of the leaves. His secret is a little different. So listen to these leaves.

Author
Izhar alam (writerdelhiwala)
- Copyright is the right of the author. No part use of the article, lines, photographs, and videos may be used without the author's permission.


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"پتیوں کی تقریر۔ میرے قلم سے"


میں آپ کو ان درختوں کے پتے کے کردار کے بارے میں تھوڑا سا بتاتا ہوں۔ تاکہ آپ ان کی کہانی کو سمجھ سکیں۔ یہ درخت ہمارے بچپن سے ہی یہاں نہیں تھا۔ یو کہتے ہیں کہ یہ پیدا کرنے کے بعد یہ درخت اسی جگہ لگایا گیا تھا ، یہ ایک پرائمری اسکول ہے اور اس اسکول میں ، ہم بھی اپنے جیسے بہت سے کمینے بچوں کی طرح پڑے ہوئے ہیں ، وہ مختلف ہیں۔ ، افریقہ اور نہ جانے کہاں جانا ہے۔ یہ دیکھنا تھوڑا بیکار ہوگا ، لیکن ہم سے پوچھیں کہ یہ ہمارے لئے کھیل کا میدان تھا ، گرنا دماغ کا کام تھا۔ اس وقت اس کی زمین بڑی تھی۔ یا ہم یہ بھی کہہ سکتے ہیں کہ ہماری ٹانگیں بھی چھوٹی تھیں۔ جس کی وجہ سے ہم کھیت کو بڑا پائیں گے۔ یہ عمارت یہاں تک نہیں تھی۔ پرانی عمارت کے آس پاس بہت سارے پیڈ لپ اسٹک سے ڈھکے ہوئے تھے ، جو تیز طوفانوں میں پھاڑ یا ٹوٹ گئے تھے۔ عمارت کی چھت سیمنٹ کی چادروں سے بنی تھی ، اس اسکول کے ایک طرف ہندی میڈیم اور سامنے والا اردو میڈیم تبدیل کیا گیا تھا۔ اس وقت پیڈ بہت چھوٹا تھا۔ جن کی ہم دیکھ بھال کرتے تھے۔ آہستہ آہستہ یہ پیڈ بڑھتے گئے اور ہم مصروف ہوگئے۔ ہم نے پانی دینا چھوڑ دیا ، اب ہم بڑے اسکولوں اور کالجوں میں جانے میں مصروف تھے۔ ہمیں دیکھنے کے لئے بہت سے دوست مل گئے۔ اس کے ساتھ ساتھ ، ہم نے نوجوانوں کو بھی فلٹر کرنا شروع کیا۔ اس پر ، نوجوان ایک سال میں ایک بار آتا ہے. ہماری جوانی اب کم ہورہی ہے۔ ہم اس کے بارے میں بات کر رہے تھے۔ مجھے نہیں معلوم تھا کہ اس کی جوانی کب آئی۔ کیونکہ ہم بہت چھوٹے تھے۔ کیا آپ یہ سوچ رہے ہیں کہ ہماری نئی خواہش بھی بڑھ رہی ہے؟ ہم نے سارا وقت پڑھنے میں لگا دیا۔ لیکن اب اور نہیں دیکھا۔ ناقص چیز۔ اگر ہم قدرت سے لطف اٹھانا چاہتے تو ہم سیر کے لئے چلے جاتے۔ پہاڑوں کی خوبصورتی دیکھ کر ہم نشے میں پڑ جاتے۔ وہاں کی وڈیاں میں میٹھے گیت گنگناتے تھے۔ . "دل چھوٹا ہے ، دل لگی ہے ، بولی ہوئی امید ہے ، چاند ستاروں کو چھونے کی امید ہے ، آسمان میں اڑنے کی امید ہے ، دل چھوٹا ہے ، چھوٹی سی امید ہے ... آپ پھولوں میں ایسے ہی بنے ہو گے۔ ... "  لمبے گھنے درخت۔ رنگین پھولوں سے آراستہ پہاڑ۔ گویا خدا نے جنت کی چادریں پھیلائیں۔ عدالتوں میں روح کی خوشبو ایسی ہوتی ہے ، ذہن سخت کھانے پر مجبور ہوتا ہے۔ خولے میدان کے آس پاس پہاڑوں اور پہاڑوں کا خوشگوار نظارہ۔ اس کے دل میں بسنا چاہتا ہے۔ خوبصورتی کا فراموش لمحہ زندگی کا سب سے من پسند لمحہ بن جاتا ہے۔ وہ ہر سیکنڈ میں زندگی گزارنا چاہتا ہے۔  ہم ان خوبصورت پرندوں کی سیر کرنے کے لئے بہت زیادہ رقم خرچ کرنے کی طرح محسوس کرتے ہیں ، لیکن سیکڑوں سالوں سے آباد درخت پودوں سے لطف اندوز ہونے کے لئے نکل جاتے ہیں۔ لیکن ہم ان درختوں کا سایہ چھوڑ دیتے ہیں۔ اسے بھول جاؤ۔ یہ ان کا سایہ ہے۔ جب بھی آپ کو وقت ملے ، ان کے نیچے بیٹھ جائیں اور ٹھنڈی ہوا کا لطف اٹھائیں۔ بعض اوقات ، وہ چادر بچھاتے ہوئے طاس پتیوں کا کھیل کھیلتے ہیں اور بعض اوقات وہ ایک ہیلی کاپٹر سے گلے پڑتے ہیں۔ گائوں کے درختوں پر جھولتے بچے ، اپنے لئے درخت پر جھولی کھیل کر لڑکیوں کو جھولتے ہیں۔ جب صحن میں درخت کے نیچے بچپن جوان ہوجاتا ہے تو ، یہ بھی معلوم نہیں ہوتا ہے کہ اس درخت سے پیار ہے۔ تیز بارش میں گیلے ہونے سے بچنے کے ل them ان کے نیچے چھپنے کی کوشش کی اور ہمیں اس وقت تک بارش سے روک دیا جب تک کہ درخت بارش کے پانی سے بھرا نہ ہو۔ ہم بھول گئے ہماری آگ میں خوبصورتی ہمارے سامنے کی سڑکوں پر ، ہم ابھی بھی پارک میں انتظار کر رہے ہیں۔ وہ بھی ہماری طرف ایسے ہی نظر ڈالتے ہیں جیسے ایک چھوٹا بچہ چاہتا ہے۔ آؤ اور ہمارے ساتھ کھیلو۔ ہم تب بھی تھے جب آپ نہیں تھے۔ ہمیں اس لوک گھاٹی میں درختوں کی خوبصورتی کا احساس ہوا۔ میں اب سوچتا ہوں کہ ہمیں اتنے سالوں سے کیوں ان کے ذریعہ گمراہ کیا گیا تھا۔ یہاں بھی خوبصورتی تھی۔ ایسا لگتا ہے کہ میں زندگی میں کہیں کھو گیا ہوں۔ "زندگی آپ سے ناراض نہیں ہے ، میں حیران ہوں ، میں آپ کے معصوم سوالات سے پریشان ہوں ،" "آپ کی زندگی ، آپ کے بغیر زندگی کا کوئی تنازعہ نہیں ہے لیکن زندگی نہیں ہے" میں نے دیکھا ہے کہ یہ درخت جوانی سے بڑھاپے تک بڑھتا ہے اور پھر جوانوں سے اگتا ہے۔ اس کے ٹیولپ پھولوں کا چھٹا ماحول ، جیسے جیسے مجھے یاد ہے ہماچل کا "چیلکوٹ" بھرا ہوا ہے۔ جہاں سبز اور سفید چادروں کے سائے بکھرے ہوئے ہیں۔ اس درخت سے کس کی خوشبو آتی ہے ، یہ درخت مجھے اس جگہ کی خوبصورتی کا احساس دلاتے ہیں۔ آئیے اس کے سبز پتوں سے کچھ بات کرتے ہیں۔ ہم آہستہ آہستہ آپ کو دن کے 30-40 دن کی گفتگو بتائیں گے۔ ہوسکتا ہے کہ آپ بھی سبز رنگ کی فطرت کی طرح محسوس کریں۔ اس درخت کے پتے بھی بولتے ہیں ، وہ انوکھے درخت نہیں ہیں۔ اسے دیکھنے کے لئے صرف ایک مختلف دماغ چاہیں ، پتیوں کی آواز سنیں۔ اس کا راز کچھ الگ ہے۔ تو ان پتیوں کو سنو۔ مصنف اظہار عالم (مصنdف دہلی والا) سی کاپی رائٹ مصنف کا حق ہے۔ مضمون کا کوئی حصہ ، لائنیں ، تصاویر اور ویڈیوز مصنف کی اجازت کے بغیر استعمال نہیں ہوسکتے ہیں۔


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