इंसानियत का सबक






एक तपती दोपहर थी, जब इज़हार अपनी मोटर साइकल पर वीराने से गुज़र रहा था। धूप इतनी तेज़ थी कि लगता था मानो आसमान से आग बरस रही हो। दोपहर के लगभग 2 बजे का समय था, और इज़हार को एहसास हुआ कि उसकी मोटर साइकल का पेट्रोल खत्म हो गया है। वह हैरान-परेशान हो गया, क्योंकि दूर-दूर तक कोई पेट्रोल पंप नज़र नहीं आ रहा था।


इज़हार ने अपनी मोटर साइकल को एक तरफ़ लगाया और आस-पास कोई मदद ढूंढ़ने लगा, लेकिन वीराने में कोई इंसान या गाड़ी दिख नहीं रही थी। निराश होकर उसने मोटर साइकल को खुद ही धक्का देना शुरू किया। धूप में उसकी हालत बुरी हो रही थी, पसीने से तर-बतर और थकान से बेहाल, मगर उसके पास और कोई रास्ता भी नहीं था।


इसी बीच, थोड़ी देर बाद, एक स्कूटर की आवाज़ आई। इज़हार ने पीछे मुड़कर देखा, तो एक आदमी अपने स्कूटर पर धीरे-धीरे उसकी तरफ़ आ रहा था। उस आदमी की उम्र करीब पचास साल रही होगी, माथे पर तिलक लगाए हुए और चेहरे पर एक हल्की मुस्कान। वह इज़हार के पास रुका और बिना कुछ कहे मुस्कुराते हुए बोला, "भाई, परेशान मत हो।चलो बैठो मोटर साइकल पर।"


इज़हार ने पहले तो संकोच किया, लेकिन फिर बैठ गया। वह आदमी स्कूटर के पीछे से मोटर साइकल को धक्का देने लगा। धूप की तपिश और थकान के बावजूद, वह आदमी लगातार मोटर साइकल को धक्का देता रहा। इज़हार के मन में कई ख्याल आने लगे। उसने हमेशा सुना था कि हिंदू और मुसलमान एक-दूसरे से अलग होते हैं, और उनके बीच की दूरियाँ कभी खत्म नहीं हो सकतीं। मगर आज, उस तपती दोपहर में, यह आदमी बिना किसी भेदभाव के उसकी मदद कर रहा था।


कुछ देर बाद, वे लोग एक पेट्रोल पंप पर पहुँचे। इज़हार पेट्रोल भरवाने के लिए उतर ही रहा था कि वह आदमी बिना कुछ कहे, उसे एक हल्की मुस्कान देकर चला गया। इज़हार स्तब्ध खड़ा रह गया। वह इतना थका हुआ और हैरान था कि उसे शुक्रिया कहने का मौका तक नहीं मिला।


उस दिन से, इज़हार के दिल में इंसानियत की एक नई तस्वीर बन गई। उसने सीखा कि मदद करने वाले लोग किसी मज़हब या जाति से नहीं बंधे होते। हर वह इंसान जो दूसरों की भलाई के लिए आगे आता है, वो दिल से बड़ा होता है। इज़हार ने उस अनजान आदमी को धन्यवाद नहीं कह पाया, मगर अब जब भी कोई किसी की मदद करता है, वह दिल से 'शुक्रिया' कहता है। 


उस दिन का वो किस्सा उसकी ज़िंदगी में हमेशा के लिए बस गया, और उसने सीखा कि इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है।

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