गिद्धों का आतंक- गिद्ध क्या कर रिया हैं?


गिद्ध क्या कर रिया हैं?

"एक कबूतर ने पतंग के धागे में लिपट कर अपने घोसले में आत्महत्या कर ली, वो कबूतर अपनी सोसाइटी में एक जाना पहचाना नाम हो चूका था। खूबसूरत तो था ही अपनी नसल का बेहतरीन कबूतर था. अदाकार था। मगर वो अंदर ही अंदर घुलता जा रहा था कोई परेशानी उसको खाई जा रही थी। मगर वो उन परेशानिओ के सामने डट कर ज्यादा देर खड़ा न पाया ओर हार गया।और वो इस संसार को अलविदा कह गया।"  

"Every tree says something, I have started writing on this subject. Some things happen on the tree. On which there is a story between the leaves and the living birds who tell each other the day-to-day story. They are written in Hindi but will translate it into English, and Urdu too.

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गिद्ध क्या कर रिया हैं





गिद्धों का आतंक 

            ज चील भिन भिना रही थी। अभी इस डाल कही पर तो कभी उस डाल। बेचैनी बढ़ती जा रही थी। कभी इधर देखती कभी उधर देखती, जब रहा नहीं गया तो दोमुखी ने चील से पूछ ही लिया। 
"आंटी क्या बात हैं आप तो कभी इधर कभी उधर, कभी इस डाल कभी उस डाल पर उछल-कूद मचा रही हो. पागलो की तरह तुम्हार व्यवहार हो गया हैं आज ही नहीं कुछ दिनों से हम देख रहे, धीरे धीरे आपकी हरकत बढ़ती जा रही हमारे बच्चे डरे जा रहे ऐसा क्या देख लिया हैं आपने? क्या करने की सोच रही हो?"
चील आंटी ने अपनी गर्दन ऊपर की तरफ करके चारो तरफ घुमाया तो कुछ शांत हुई। -"में कई दिनों से गिद्धों को उड़ते हुए देख रही हूँ धीरे धीरे गिद्ध बढ़ते जा रहे"
गुररिया बोली " तो इसमें नया क्या हैं जहा मुर्दार होंगे वो जायेंगे ही"
 "इसमें बोहोत कुछ हैं हैं तुम को नहीं पता वो गिद्ध हैं वो मुर्दार की जगह इस बार जिंदो को अपना निशाना बना रहे हैं " और चील फिर से अपनी मुंडी ऊपर करके देखने लगी। 
"कोई नहीं हैं"- तोते मियां ने दिलासा दिया। 
"ऐसा क्या हैं गिद्धों में"-चंदमुखी -
चील एंटी ने सभी को गुस्से में देखा और कहा -"एक बात आप लोगो से कह दूँ, कोई भी ज्यादा दूर नहीं जायेगा और है कोई किसी से किसी भी विषय पर बात नहीं करेगा"-"कैसा विषय आंटी"- " आंटी ने दोमुख को घुरा। "यूं कह रहे हो जैसे पता नहीं रोज़ ललन की खिड़की से टीवी देखते हो दुनिया की सारी समस्या का तो तुम को पता हैं आज कल क्या चल रहा ये नहीं पता तुम को कियूं मज़ाक कर रहे हो दोमुख"- " मैं सही कह रहा हूँ आंटी आप किस बात पर कर रही हैं" - आंटी को गुस्सा आ गया और  हो गई और चंदमुखी की तरफ देखती  हुई बोली। "चंदमुखी समझा लो अपने बॉयफ्रेंड को कंही में आज ही इसका पत्ता काट न दूँ. इतना सुनते ही सभी खामोश हो गए और दोमुख की तरफ देखने लगे चंदमुखी ने आंटी से माफ़ी मांगी। थोड़ी देर शान्ति के बाद बुलबुल गुरैया के पास आकर बैठ गई और मुस्कुराते हुए बोली " जानते हो आज मुझे क्या मिला" सभी आंटी की तरफ ख़ामोशी से देखने लगे किसी ने  बुलबुल के कही बात पर कोई धियान नहीं दिया। बुलबुल की बोहें चढ़ गई कोई भी उसको भाव नहीं दे रह हैं झल्ला कर बोली। "ओये हसमुख में तुझसे बात कर रही हूँ मुहं कियूं सील रखा हैं।" और हसमुख जैसे मासूम से पत्ते को अपनी चोंच से पकड़ कर हिला दिया। चील ये सब देख रही थी उसके चेहरे पर इस हरकत को देख कर हसी आ गई सभी डरते डरते हुए मुस्कुराये बुल बुल समझ नहीं पा रही थी अभी तो सब चुप थे अभी चील के मुस्कुराने पर सभी मुस्कुरा रहे थे.  " क्या हुआ था दोस्तों"-बुलबुल 
कुछ नहीं - चील ने बुलबुल की कमर को सहलाया फिर बोली " कुछ  नहीं बुलबुल आज कल आस पास गिद्ध घूम रहे बड़े ही जंगली किश्म के हैं. वो आपने आका के डाले दानों पर इस क़दर मेहरबान हैं उसके इशारे पर वो किसी को भी घेर कर नोच नोच कर मरने के लिए छोड़ जाते हैं वो जगहमी मर भी नहीं पता और जी भी नहीं पता इस हद तक पहुंचा देते हैं वो जालिम गिद्ध। यही नहीं  जैसे ही वो जख़्मी उठता हैं उसको फिर से नोचने लगते हैं अपने मालिक का पूरा हक़ अदा करते हैं ये गिद्ध। किसी की जिंदगी से उनका कोई लेना देना। सामने जो टारगेट  मिलता हैं उसका वो पूरी चीड़फाड़ कर देते हैं। यहाँ तक बच्चे ही सामने कियूं न हो किसी को नहीं बख्सते।"
"कहा से आये हैं ये जालिम गिद्ध "- गुरियया ने घिन-भरी अदा में अपना मुँह बना कर पूछा था. 
चील आंटी ने कहा -"ये कही दूर से नहीं आये! बनाये जाते हैं ! हमारे बीच में से। बना कर सीखा कर, टारगेट देकर भेजे जाते हैं !"
"भेजे गए हैं, तो इनको मारते कियूं नहीं ?"-सभी ने एक स्वर में प्रशन पूछा था। 
"हां ये वो गिद्ध हैं जो खुद कोई शिकार नहीं कर सकते। न ही शिकार ढूंढ़ने जाते हैं। इनको शिकार दिखाया जाता हैं। बाक़ी काम ये छोटे गिद्ध, अपना रूप बदल कर, खतरनाक गिद्धों का रूप ले लेते हैं और शिकार के ऊपर झपट पड़ते हैं "- चील कहते हुए सेहम गई। 
"मगर वो तो गिद्ध हैं वो?" -बुलबुल -चीला आंटी  फिर से इधर उधर देखने लगी. गर्दन निचे करके बोली -"मैं आप सब को बताना चाहती हूँ ये वो गिद्ध हैं जो किसी भी हद तक जा कर अपना काम कर सकते हैं - में आपको अपने दोस्तों की आँखों देखि तुम लोगो को बताती हूँ ध्यान से सुनना।". सभी चील की तरफ ध्यान से देखने लगे सभी के कान चील आंटी की तरफ थे।"  एक कबूतर ने पतंग के धागे में लिपट कर अपने घोसले में आत्महत्या कर ली, वो कबूतर अपनी सोसाइटी में एक जाना पहचाना नाम हो चूका था।  खूबसूरत तो था ही अपनी नसल का बेहतरीन कबूतर था. अदाकार था। मगर वो अंदर ही अंदर घुलता जा रहा था कोई परेशानी उसको खाई जा रही थी। मगर वो उन परेशानिओ के सामने डट कर ज्यादा देर खड़ा न पाया ओर हार गया।और वो इस संसार को अलविदा कह गया। एक बात में बताना भूल गयी उसकी भी एक दोस्त थी. एक पार्टनर थी। यू कहे के सब कुछ थी। वो एक खूबशूरत कबूतरी थी उसी कबीले की थी अदाकार थी। अच्छी नस्ल अकल की थी। पर जब तक गिद्धों ने उसको हर तरफ से चीर-हरन/चीड़फाड़ न कर दिया। उसके साथ साथ उसके परिवार को, उसके साथिओ को भी नहीं बख्शा उन जालिम गिद्धों ने".-
 इतना कह कर चील ने एक लम्बी साँस ली और कापने लगी।  तभी पास बैठे हसमुख ने कहा -" चील आंटी आप हिमत हार जाएँगी तो हमारा क्या होगा। आप इन गिद्धों के खिलाफ कोई आंदोलन कियूं नहीं चलती। हम आपके साथ हैं "- " हम तुम चंद से पंछी और पोधे हो।  मेरे छोटे बच्चे हैं मुझे इनका ख्याल रखना हैं। इन के पास सत्ता पैसा उद्योगपति, और सबसे बड़ा हथियार सोशल प्लेटफॉर्म इनके सपोट में हैं। इनके सपोट में और भी बोहोत चीज मौजूद हैं।  लड़ने के लिए हमारे पास कुछ नहीं " - चील ने हसमुख को समझया जो नेता बनने जा रहा था। -
चंदमुखी ने दोमुख से कहा -"दोमुख तुम रोज़ उस कबूतर/कबूतरी को ललन के टीवी पर देखा करते हो। वो गिद्ध किस तरह उस कबूतरी के परिवार को नोच रहे थे। उसके भाई के साथ कबूतर के सहायक को भी बुरी तरह से और बार बार नोचा जा रहा हैं। हम रोज़ यही सब देख कर परेशान थे। टीवी समाचारो में पर इसके अलावा न तो कोरोना का कोई समाचार हैं। ना ही परिंदो के बेरोज़गार होने का। करोड़ो बेरोज़गार होते जा रहे छोटी बड़ी फेक्ट्री बंद हो गई हैं या बंद होने के कगार पर हैं लोग बर्बाद भुख-मरी की और बाढ़ रहे। मगर हमारी जंगल/टापू की सरकार सोइ हुई हैं. इस और कोई ध्यान ही नहीं हैं बस चारा कबूतरी पर डाला हुआ हैं और गिद्ध उसको नोचे जा रहे। "-
बीच में ही दोमुख बोल पड़ा -"नहीं सोइ नहीं बस एक काम कर रही हैं हमारी सरकार उन परिंदो को पकड़ने के लिए अपने ख़ास चमचो को लगा रखा। जिनका नाम किसी भी तरह के झगड़ों में नहीं हैं। मगर नाम लिख कर उन को पकड़ने मे अपनी जी जान लगा रखी हैं।"
इस वाक़ये को गुररया ने पूरा कर दिया -"रोज़गार क्या होता हैं हमारे साथी बेरोज़गार होते जा रहे. हमरे भाई-बहन बेरोज़गार हो कर घर बैठे हैं इन कोरोना में अभी नौकरी मिलपना भी मुश्किल हो रही घर कैसे चलते होंगे उन सबके। उसका ख्याल तक नहीं". 
बुल-बुल ने बात आगे बढ़ाई - ""मड़र-मट्टू" जी का कोई कोरोना पर सन्देश नहीं। सहानुभूति नहीं 47 लाख पार गए हम। बाढ़ में हज़ारो जानवर पेड़ पौधे नष्ट हो गए जानवरो का पता नहीं सेकड़ो टापू पानी पानी हो गए मगर साहब गायब हैं "-
चंदमुखी भी कहा पीछे रहने वाली वो भी बोली -"हमारे परींदो का घर उजड़ गया। मगर साहब "अपनी बात" में पालने को देशी कुत्ता कहते हैं। हमारे चहेते "मड़रमट्टू" साहब। जैसे वो आम खाने का तरीक़ा बताते हैं वैसे ही खिलोने बनाने की सलाह देते हैं।"
हम समझ गए आंटी ये गिद्ध कौन और किसके इशारे पर और कियूं और क्यां कर रहे हैं। अब भी ये अंध-भगत पंछी ,पत्ते अभी नहीं जागे तो कभी नहीं जाग पाएंगे। साहब "मड़रमट्टू" ने जो अपने नाम की पट्टी आँखों पर बंधवा राखी और कानो में "मड़रमट्टू" शब्द को हनुमान चालीसा की तरह गुँजवा रखा वो नौकरी नहीं देने वाले। "मड़रमट्टू" साहब ने तो हमारे जंगल की अर्थव्यवस्था (एकनॉमिश) बरबाद कर डाली हैं सकल घरेलु उत्पाद पुरे संसार के टॉप 20 जंगलो में सबसे ख़राब रही हैं जो पहली तिमाही में (23.9 %) देखना हैं अगले तिमाही में क्या रहती हैं।"
 इतना सुनते ही सभी की गर्दन ललन के टीवी की तरफ घूम गई और चील ने अपनी गर्दन ऊपर करके चारो तरफ घुमाने लगटी हैं. बुल बुल गन गुनती हुई वहा से उड़ चली। 

लेखक 
इज़हार आलम देहलवी 
writerdelhiwala.com 

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