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इस्माइल की उम्मीद

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कहानी: इस्माइल की उम्मीद इस्माइल एक साधारण सरकारी कर्मचारी है, जिसकी जिंदगी में पैसे की तंगी हमेशा बनी रहती है। उसकी आय सीमित है, पर खर्चे आसमान छूते हैं। इस्माइल को पेंटिंग्स का बहुत शौक है। उसके घर की दीवारें खूबसूरत पेंटिंग्स से सजी रहती हैं। ये पेंटिंग्स उसके दिल को सुकून देती हैं, लेकिन उसकी जेब को खाली कर देती हैं। इस्माइल की एक प्यारी सी बेटी है, जिसे वह अपनी जान से ज्यादा प्यार करता है। बेटी बचपन से ही पढ़ाई में बहुत होशियार है और उसका सपना है कि वह विदेश जाकर उच्च शिक्षा प्राप्त करे। इस्माइल अपनी बेटी के इस सपने को पूरा करना चाहता है, पर उसकी आर्थिक हालत इसके आड़े आ रही है। घर वाले और करीबी रिश्तेदार इस्माइल के इस फैसले के खिलाफ हैं। वे कहते हैं, "बेटी को विदेश भेजने का कोई मतलब नहीं है। इतना खर्चा करने की क्या जरूरत है?" कुछ लोग तो यह भी कह देते हैं, "बेटियों पर इतना खर्च करने से क्या फायदा? उन्हें तो आखिरकार शादी कर ही जाना है।" इन तानों और तर्कों ने इस्माइल के दिल को भारी कर दिया है। लेकिन इस्माइल ने ठान लिया है कि वह हर हाल में अपनी बेटी को बाहर पढ़ने भ

“आशा” की किरण

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**शीर्षक: आशा की किरण** दिल्ली के एक छोटे से मोहल्ले में रहने वाली प्रिया की उम्र महज़ 22 साल थी, लेकिन उसकी ज़िम्मेदारियाँ किसी परिपक्व वयस्क से कम नहीं थीं। उसकी माँ का निधन तब हुआ था, जब वो सिर्फ़ 16 साल की थी। उसके पिता, विजय, एक स्थानीय दुकान पर काम करते थे, जहाँ से मुश्किल से घर का खर्चा चलता था। घर की छोटी-छोटी ज़रूरतें पूरी करना भी कभी-कभी मुश्किल हो जाता था। प्रिया के दो छोटे भाई-बहन थे—राहुल और पायल। माँ के जाने के बाद, प्रिया ने ही दोनों की देखभाल की ज़िम्मेदारी उठाई थी। उसने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी थी ताकि घर का काम संभाल सके और अपने भाई-बहन की पढ़ाई में मदद कर सके। मोहल्ले के लोग उसे देखते और कहते, "बिना माँ की लड़की ज़्यादा क्या कर पाएगी?" लेकिन प्रिया के इरादे मजबूत थे।  प्रिया का सपना था कि वो एक दिन आईएएस अफ़सर बने, ताकि वह अपने परिवार को बेहतर जीवन दे सके। हर सुबह जब वह अपने भाई-बहन को स्कूल भेजती, तो मन ही मन सोचती कि एक दिन वह भी वापस स्कूल जाएगी। लेकिन दिनभर घर का काम, भाई-बहन की देखभाल और फिर मोहल्ले की महिलाओं के ताने सुनकर उसके हौसले टूटने लगते।