देखो बिहार आया


देखो बिहार आया 
खण्ड -2

"ए दोमुख जरा कुछ खबरे तो सुना"-  चील दोमुख के कान ऐंठते हुए -
"आज के मुख्य समाचार इस प्रकार हैं आंटी जी" - दोमुख 
सुबह की पोह फटी थी पेड़ के निचे ललन अखबार लिए बैठा जोर जोर से खबरे पढ़ रहा था।  
तुर्की में भूकम आया १० मर गए।  
"छत्तीसगढ़ में नक्सली हमला ३ पुलिस वाले जख्मी", और बहार का पेज गया इसमें कोनसी खबर हैं हैं ये तो हमारे प्रधान सेवक की खबर हैं इसको धियान से पढ़ना पड़ेगा।  
ललन ने अपना चस्मा नाक से खिसकते हुए खबर पर ध्यान से देख कर पढ़ने लगा ललन की पड़ने की छह इतनी थी के वस्को नहीं पता था के वो सही पढ़ रहा हैं या गलत पबाद पढ़ना था इसी लिए वो सवेरे सवेरे ही अखबार ले लेकर घर से बहार पेड़ के निचे बेथ कर पढता हैं।  खबर सुने आप सायद काम आजाये ललन के या आप के। 
"कल हमारे प्रधान सेवक गुजरात को एक नहीं कई योजनाओ का लॉक अर्पण करेंगे जो उन्होंने गुजरात को पिछले वर्ष दी थी। सरदार सरोवर पर बने कई टूरिस्ट स्पोर्ट जहा से गुजरात को हर वर्ष करोड़ो रूपीओ का सहारा मिलेगा और हजारो को नौकरी सरकारी/प्राइवेट।" और ललन चुप हो गया क्यूंकि सामने से मिसज़ ललन ने जोर से आवाज जो लगा दी थी। "अबे सुनता नहीं, अखबार को पूरा चाट जाइयो नास्ता न मिलेगा आज दूध तेरा....बेटा लाएगा।" . ललन ने चस्मा हटाया और गाली देता हुआ वहा से उठ कर चला गया। 
 "लो आंटी समाचार खत्म"
चील उडी और अपने घोसले में जा कर बैठ गई. 
तोड़ी देर में हसमुख दोमुखी से बोला "दोमुख एक बात बता अभी बिहार में किसकी सरकार हैं"-"नीतीश जी की"- "नहीं वहा दो पार्टीओ की सरकार हैं एक वो जिसका प्रधान सेवक हैं और एक वो जो बिहार का प्रधान सेवक हैं यानी नीतीश जी "
तभी पास बैठे तोते मियां ने भी अपनी चोंच खोली और बोले "वहां तो चुनाव चल रहे हैं"- 
"हां यही तो में कहना चाह रहा था तोते मियां ने सही पकड़ा हैं"
"कहना क्या चाहते हो"
"वही जो तुम देख और सुन नहीं पा रहे"
क्या मतलब"
"मतलब के नितीश जी अपने भाषण में क्या कह रहे"
"अरे भाई पहेली मत बुजाओ जो कहना हैं साफ साफ कहो"
"उनका कहना हैं के बिहार के पास समुन्द्र नहीं हैं चारो तरफ दूसरे राज्य हैं यहाँ बड़े उधोग नहीं आते, परिवहन लम्बा पड़ता हैं इस लिए बड़ा उधोग नहीं लगता"
इसका क्या मतलब नेता तो पता नहीं क्या क्या कहते रहते हैं सब सच्चा नहीं होता"-दोमुख ने दिलासा दी। 
"अभी ललन ने क्या खबर पड़ी हैं? के गुजरात में एक साल पहले दी गई थी कई सौगात". "क्या बिहार को भी दी गई थी कोई रोजगार वाली सौगात , रेलवे के नौकरी थी उनका सपना, उनके सपने को भी नहीं छोड़ा ?, जबकि बिहार में उन्ही के सपोट की सरकार हैं वो भी पिछले १५ सालो से तो बिहार का विकास कहा गया ? केंद्र में वही, राज्य में वही, तो विकास कहा हैं ? बताओ?"
सभी चुप हो गए, विकास की बात में दम हैं। राजनितिक बाते होती देख चील भी अपने घोसले से उड़ कर हसमुख वाली डाल पर बैठ गई। -
" बात तो तुम्हारी सही हैं हसमुख ललन के पढ़ने की कला किसी के समझ आये या न आये पर तुम्हारे भेजे में जाकर बैठ जाती हैं लगता हैं तुम्हारा भी रिस्ता हैं बिहार से"- चील 
हसमुख के साथ साथ सभी हँस पड़े।  
"आगे बताओ हसमुख और क्या-क्या बताना चाहते हो इस राजनीती के बारे में "-चील बैठ गई। 
"मैं तो बस यही कहना चाहता हूँ के क्या वही प्रधान सेवक जो बिहार में गठबंधन बना कर सरकार चलाते हैं वहा की जनता को पिछले ६ सालो में कुछ न कुछ तो दे ही देते,क्या दिया? एक गुजरात जैसा कोई नया पर्यटन स्थान ही बनवा देते नालंदा को ही खूबशूरत बनवा देते पटना तो राजधानी हैं वही का कूड़ा उठवा देते। जब गुजरात को सरदार पटेल का स्टेचू के साथ साथ कई टूरिस्ट पैलेस दिए हैं नोकरिया पैदा की रुपए कमा कर सरकार का खजाना भरने का अवसर दिया हैं तो बिहार पीछे क्यूँ ,क्यों नहीं दियाकोई बड़ा पैकेज". 
"इसका जवाब साफ हैं बिहारिओं को देश में दोयम दरजे का समझ रहें हैं जिस प्रकार किसी राज्य के शहर में एक पॉश कालोनी होती हैं जहा सभी सुविधाए होती हैं उसके बाद मिडिल परिवारो के घर बार छोटे होते हैं नौकर छोटे कारोबारी होते हैं, उसके बाद घनी बस्तिओ में अनऑथराइज़ कलोनिओ में बसे तेडे मेडे गालिओ में गरीबो के घर और उसके भी साइड में निचे झपड़िओ में रहने वाले शेहरिओ की हालत होती हैं"
"चीलआंटी इस देश में सरकार अगर बिहरिओ की समस्या सही कर दे तो उनके मकान में सफाई कोन करेगा, गारा-चिनाई, सड़क-नाली के सफाई कर्मचारी कहा से सस्ते में मिलेंगे"। 
"अगर सरकार उन गरीबो को सारी सहूलियत के साथ सरकारी नौकरी भी दे तो, मजदूर, सफाई कर्मचारी, झाड़ू पोछा करने वाली औरते, छोटे-छोटे बच्चे मजदूरी करते, गोद में ही बच्चिया कहा से खरीदी जाएँगी। बस यही फ़र्क़ हैं। इस देश की राजनीती की इकोनॉमिस्ट की सोच  में, मजदूरो के बच्चे मजदूर ही बनने रहे, यही तो बिहार हैं यही". -चंद्रमुखी ने भी अपनी बाते रखने में देरी नहीं की क्यूंकि ये राजनीती की बाते हो रही हैं बड़ी चटखारे वाली राजनीती बाते।  हो कुछ नहीं रहा बस बातें हो रही। 
"अगर इन्होने समय से पढ़ लिया तो नोकरिया मांगेंगे इनका शिक्षा का सिस्टम इतना धीमा कर दिया हैं के 6 साल में ग्रेजवेट बनाया जा रहा उम्र निकाल दो नौकरीओ की. न उम्र होगी न देनी पड़ेगी। फिर पकोड़े बनाओ चाय बनाओ। यही तो विकास हैं बिहार का "
"सभी हसमुख की समझदारी पर तालिया बजाने लगे 
"तालिया नहीं बजाओ बस दबाओ बटन विकास का "-हसमुख ने रोका -"सबको इतनी सीरियस बात हो रही हैं मैं  नेता नहीं "
"आगे बताओ हसमुख भाई -तोते मियाँ 
"पर नितीश तो बिहार का उद्धार करने आये थे न।"- गोरैया भी बोली 
"हा क्यों नहीं कर सकते थे उद्धार. पर उद्धार के लिए रूपया तो सेण्टर को ही देना था". 
"ये भी ठीक हैं"-दोमुख 
" एक बात और ऐसा नहीं की कोई बड़ी योजना का उद्धघाटन नहीं  होता। होता हैं वो भी चुनाव से कुछ महीने पहले, सायद जनता फिछले चुनाव के उद्धघाटन का फीता भी अभी तक टंगा होगा वही जहा कटा था। योजनाए होती ही भूलने के लिए। ये वाली भी योजना भूल जाएगी, ये बिहार हैं भाई बिहार, यहाँ की जनता को बस दो जून की रोटी मिल जाये ये सब भूल जाती हैं "
"ऐसा नहीं हैं अभी भारत में कोरोना की वझे से लॉकडाउन हुआ, पहले कोई एलान न कर सभी को परेशान कर दिया जब लोगो को रोटी और किराए देने के पैसे नहीं बचे तो घर को पलायन इन्ही लोगो ने किया था रस्ते में कई सो लोग मौत के मुँह में समां गए कोई पैदल, कोई साइकल से, कोई रिक्सा लिए घर को चल पड़ा कोई बच्चे छोड़ कर चल बसा/बसी , सरकार देखती रही, बाबू ये बिहार की जनता हैं, सब भूल जाती हैं"
अब सभी सोचने लगे के वाक़ये बिहार के चुनाव में इन सभी बातो का असर पड़ेगा या फिर वह जात -पात, इलाका, धर्म, उच-नीच, परान्त आदि का वर्चस्व रहेगा। या फिर ... 

खण्ड -2 में जारी 

लेखक 
इज़हार आलम देहलवी 
writerdelhiwala.com  

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