हामिद की ईदगाह वाली जैसी ईद ?
"पेड़ की भूमिका"
(“चलिए हम आपको लेख पढ़ने से पहले। इसकी भूमिका के बारे में थोड़ा समझा देते हैं।आप इसको नाटक/कहानी/वार्तालाप/लेख जो भी कहे पर हर शब्द उनकी ज़ुबानी। इस लेख को बयान किरदार करते हैं.और हम यानि “इज़हार आलम” अपनी कलम से लिखते हैं। किरदार हमारे घर के सामने वाला पेड़ हैं। इस पेड़ के पत्तों के साथ साथ-साथ इस रहने वाले परिंदे। जो घोंसला बना कर इस पेड़ रहते हैं। पेड़ के क़िरदार या पात्र कहें सब पर्यावरण के मित्र हैं। जैसे - पेड़ के पत्तों में से पहला किरदार “हसमुख और दूसरा- “दोमुख” इसी तरह और भी नाम हैं इस पेड़ के पत्तों के। “चील आंटी” (जिनका बड़ा सा घोसला बना हैं इस पेड़ पर), “तोते मियाँ”, “गुररिया”(छोटी चिड़िया जो लुप्त हो गई), “कोयल” ओर बोहोत सारे परिंदे जो इस पेड़ पर रोज़ सुबह आ कर बैठ जाते हैं और बतियाते हैं । इनकी जुबानी आपके लिए।” )
"हामिद की ईदगाह वाली जैसी ईद ?"
"हामिद की ईदगाह वाली जैसी ईद ?" |
"आज ईद हैं , पर ख़ुशी कही दिखाई नहीं दे रही। लोगो में हलचल नही हैं। आज इस चौराहे पर भीड़ नहीं हैं आज नमाज़ नहीं हैं। कोई किसी के गले नहीं मिल रहा कोई किसी से हाथ नहीं मिल रहा। कोई किसी के घर सवैया नहीं खाने जा रहा बच्चो को आज क्या हुआ हैं कही हामिद दिखाई नहीं दे रहा हैं।" - पेड़ पर बैठे पंछिओं और पत्तो में एक अजीब सी हलचल हो रही थी । - "देखना भाई आज यहाँ ईद की नमाज़ नहीं हुई "-सम्मुख (एक नया पत्ता ).हसमुख बता रहे यहाँ "मोमीन चोक" पर ईद की नमाज़ में सेकड़ो लोग इखट्टा हो और कंधे से कन्धा मिलकर दूर तक खड़े हुए होते हैं और एक साथ नमाज़ के लिए सजदे में जाते नज़र आते हैं।" - सम्मुख ने निचे सुनसान चौराहें को देखा। दोमुख ने कहा "भाई मेने भी अपने बड़ो से यही सुना हैं और देखा भी हैं के के हर ईद पर यहाँ बोहोत हलचल रहती हैं खुशियां हर तरफ होती हैं। पर इस बार की ईद कुछ अलग हैं यहिकीनही पुरी दुनियाँ में ईद ऐसीही मनैजा रहीहें ". तोते ने अपनी गर्दन इधर उधर घुमाई और बोला -"आज हामिद नहीं दिखाई दे रहा ,क्या आज हामिद ईदगाह नहीं जायेगा , क्या आज हामिद अपनी अम्मी के लिए चिमटा नहीं लाएगा ? कहाँ गया हामिद" - " भाई जब ईद की नमाज़ ही नहीं होगी तो हामिद क्यूँ जायेगा ईदगाह। कोई आज गले भी नहीं मिल सकते। बाजार गुलज़ार भी नहीं हैं तो ऐसे में हामिद चिमटा कहा से खरीदेगा ?"-दोमुख ने मायूसी से जवाब दिया। सब इधर उधर देखने लगे और चुप हो कर बैठ गए। ऊपर उड़ती चील अचानक निचे आकर बेथ गई और अपनी आँखों में आँसू भर लाई। "क्या हुआ चील आंटी आपकी आँखों में आज पानी कहा से आ गया क्या हुआ"- हसमुख ने चील की आँखों में देखते हुए बोला और अपने हाथो से चील आंटी के आंसू पूछने लगा। ये देख सभी चील की तरफ देखने लगे। कुछ नहीं बस अपनी इतनी लम्बी जिंदगीमें ऐसी ईद नहीं देखि , थोड़ी रुकी और बोली " इनकी तो ईद घरो में हो जाएगी में उन लोगो को देख कर आई हूँ जो टूटी चपल फाटे कपड़ो के साथ साथ बेबस नज़र आते. वो लोग जिनकी ईद घरो में नए नए कपडे पहन कर होती वो आज इस दुर्दशा में हैं एक तो खाना नहीं घर बार नहीं कही जा नहीं सकते अगर पैदल चलकर जाते हैं तो पुलिस डाँडो समारती हैं और अगर रस्ते में जाते हैं तो मरने का ज्यादा अंदेशा हैं। देखा नहीं कितने लोग मरे गए हैं रस्ते में , ।" - "ये तो उनकी ईद होती ही कब हैं। गरीब और गरीब होता जा रहा हैं और अमीर और अमीर सरकार उनकी सिस्टम इनका, अपनी मर्ज़ी पर जीते हैं ये बड़े लोग, मरना तो गरीब का हैं तो कैसी ईद केसे ईद के नए कपडे।"-दोमुख ग़ुस्सेमें हो गया था। "वो देखा हैं सामने वालो को कोई भी नए कपड़ो में नहीं हैं सायद जो नए कपड़े पहेन कर आया भी होगा। उसको शर्म आ रही होगी "- चिड़ियाँ ने अपना आँखों देखि सुनाई।
चील ने अपनी दास्ताँ को आगे बढ़ाया। " मुझे आज इन सभी पर रस्क आ रहा हैं "- वो कैसे " हसमुख ने सवाल किया। " आज इनको देखो ये कितने मिलनसार नजर आ रहे, बिना गले लगे और बिना ईदगाह गए भी ये लोग कितने खुश हैं अपनों से गले लगना तो दूर ये अपनों से मिलने उनके घर भी नहीं गए। देखा नहीं तुम लोगो ने पुरे तीस दिन रोज़े रखे इबादत की दिन रत कुरआन पढ़ा इस महामारी से निजात के लिए अल्लाह से दुआ मांगी। जब ईद मनाने का टाइम आया यानि खुशियां मनाने का टाइम आया नए नए कपडे पेहेन कर इतराने का टाइम आया था मगर बिना इन सब चीजों के इन लोगो ने उन लोगो के यहाँ ईद मनाई जहा कुछ नहीं था, मोहताज़ लोग जिनका कारोबार ख़तम हो गया या नौकरी चली गई , मज़दूरी ख़त्म हो गई थी इस लोकडाउन में। इन्होने सवैयाँ बना कर उन राहगीरों को खिलाया जो अपने घर जाने के लिए रस्ते में थे। उन लोगो ईदी दी जिनको इसकी ज्यादा जरुरत थी। ऐसी ईद रही जो याद रखी जायेगी सदीओ तक।
अब की बार हामिद एक नहीं अनेक हैं जिन्हे चिमटे की ज़्यदा जरुरत हैं चिमटे के साथ साथ तवा और खाना बनाने के लिए सामन भी। साथ ही घर तक जाने का साधन ताकि कि कोई मज़दूर भूका न रहे। मज़दूर के पेरो में छाले न पड़े, चप्पल न टूटे, जुते जो पहले ही फटे हैं और न फटे। मज़दूर को रास्ते में मरने के डर से निजात। हामिद के साथ कमल, कवलजीत और जॉर्ज जैसे मज़दूरों को जरूरत ज्यादा थी। तभी इन सभी लोगो ने इन सभी की ईद मनाने में मदद की हैं इससे अच्छी ईद और हो ही नहीं सकती थी लोग हर साल अपनों के साथ उन मोहताजों को ज्यादा तरज़ीह दे ताकि दर साल कोई मोहताज़ न रहे इस मुल्क में। अमीन। ऐसे वक़्त में जब की कोरोना का केहर चारो तरफ हैं कोई हाथ नहीं मिला रहा।"- सभी उस पेड़ पर बैठे बैठे एक दूसरे से गले मिले और सभी ने एक दूसरे को जोर से कहा "ईद मुबारक "
लेखक
इज़हार आलम- (writerdelhiwala)
( हामिद की कहानी ( ईदगाह ) मुंशी प्रेम चंद की लिखी हुए हैं अगर आप पड़ना चाहते हो तो निचे दिए लिंक पर क्लिक कर के पड़ सकते हैं )
http://www.hindikahani.hindi-kavita.com/EidgahMunshiPremchand.php
टिप्पणियाँ
कहने को कुछ बचा नहीं । चारों ओर हामिद ही हामिद हैं । हमिदों से उबलती सड़कें पटी हैं ।